मेरी अपनी व्यक्तिगत राय में .......केवल नैतिक मूल्यों से ही
पाशविक प्रब्रितियो पर नियंत्रण पाया जा सकता है ,आंतरिक अनुशासन से ही हम
समाज में अपना अस्तिव अक्षुण रख पा रहे है, अगर ऐसा न होता तो पाषाण युग से आज
तक की यात्रा,या यूँ कहे की होमोसेम्पियेस से चेतना स्तर को हमने विकसित किया
या प्रकृति के द्वारा हो गया कह नहीं सकता ! सब कुछ मानवीय अनुशासन से और
मानवीयता से निसृत है और यह सब हमारे अंदर संवेदनशीलता से आती है, और संवेदना
का विकास हमरे प्रबत्तियों से, और प्रबत्तियां हमारे सांस्कृतिक मूल्यों से, और
सांस्क्रतिक मूल्य धर्म से ,और धर्म हमरी पद्यतियों से जीवन शौली से! रही कानून
व्यवस्था की बात, तो वो इसी अन्तर्द्वन्द की उपज है !व्यक्ति की पशुता को कानून
से नही दूर किया जा सकता ! एतिहासिक सांस्क्रतिक पृष्ठिभूमि का बिहंगम अवलोकन
आवश्यक है !कानून व्यक्ति के लिए होता है पशु के लिए नहीं, अगर व्यक्ति में
पशुता है तो देवत्व भी है! अभी कितने साल हुए गाँधी जी को हमसे अलग हुए जितने
भी महापुरुष हुए है, वे ऐसा सिर्फ अपनी प्रबल घनीभूत संवेदनशीलता एवं द्रष्टिकोण
व्यापकता की वजह से ही है .....................सादर
पाशविक प्रब्रितियो पर नियंत्रण पाया जा सकता है ,आंतरिक अनुशासन से ही हम
समाज में अपना अस्तिव अक्षुण रख पा रहे है, अगर ऐसा न होता तो पाषाण युग से आज
तक की यात्रा,या यूँ कहे की होमोसेम्पियेस से चेतना स्तर को हमने विकसित किया
या प्रकृति के द्वारा हो गया कह नहीं सकता ! सब कुछ मानवीय अनुशासन से और
मानवीयता से निसृत है और यह सब हमारे अंदर संवेदनशीलता से आती है, और संवेदना
का विकास हमरे प्रबत्तियों से, और प्रबत्तियां हमारे सांस्कृतिक मूल्यों से, और
सांस्क्रतिक मूल्य धर्म से ,और धर्म हमरी पद्यतियों से जीवन शौली से! रही कानून
व्यवस्था की बात, तो वो इसी अन्तर्द्वन्द की उपज है !व्यक्ति की पशुता को कानून
से नही दूर किया जा सकता ! एतिहासिक सांस्क्रतिक पृष्ठिभूमि का बिहंगम अवलोकन
आवश्यक है !कानून व्यक्ति के लिए होता है पशु के लिए नहीं, अगर व्यक्ति में
पशुता है तो देवत्व भी है! अभी कितने साल हुए गाँधी जी को हमसे अलग हुए जितने
भी महापुरुष हुए है, वे ऐसा सिर्फ अपनी प्रबल घनीभूत संवेदनशीलता एवं द्रष्टिकोण
व्यापकता की वजह से ही है .....................सादर
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