व्यक्तिवादी युग की अवधारणा में सामाजिक और नागरिक चिंतन के प्रति स्वयम को उपस्थित करना स्वयम के साथ जद्दोजहद है! फिर भी सामाजिक इकाई के रूप में हम जाने -अनजाने योगदान करते है, जिसकी अभिव्यक्ति ही वर्तामानिक सामाजिक ठांचा है!जहाँ हमारी अपनी सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति आत्म मुग्धता है तो सनातन के प्रति विस्तृत अनुशाशन भाव और क्रमश:आत्म स्वीकारोक्ति भी! यह इसीलिए है की एक इकाई के रूप में व्यक्ति के योगदान ने तत्कालीन समय में सम्पूर्ण रूप से एक संस्कृति को जन्म दिया!जिसके निरंतर पवाह ने हम सबको अभिसिंचित किया है !हम सब उसी के अंश है, आईये एक इकाई के रूप में हम सब संस्कृति की संसृत बन पुन इस तपोभूमि में स्वयम को तपायें और व्यक्तिगत स्तर पर हो सके तो लोंगों का मार्ग दर्शन करें और संस्कृति की त्वरा को प्रवाहमान,गति दे .................
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