Friday, December 2, 2011

मीमांशा

समाज ,सभ्यता ,राजनिति
विज्ञान ,धर्म और समष्टि
राजनिति ,कूटनीति ,हितोपदेश ,
प्रकृति पुरुष में विभेद
      मीमांशा
आकांक्षा उपलब्द्धियो के आंकड़ें
  व्यक्ति के समाज के ,
सभ्यता के प्रस्थान से शीर्ष तक
स्वर  आरोह  अवरोह
वर्तमान के आईने में
यथार्थ जीवन अतीत के परिधान में लिपटी दुल्हन
वर्तमान की स्रष्टा
सर्जक
अंतहीन
उर्जा स्त्रोत की जनक
अखंड अजन्मा
जीवन
वह गया , यह आया
यही जीवन










13 comments:

  1. एक सशक्त रचना ..या यथार्थ भी कहा जाये तो अतिशोयोक्ति नहीं , जीवन की यही परिभाषा है .....पर कितने लोग समझ और पढ पते हैं ? हम सिर्फ सच्चाई से मुह मोड़कर भागना जानते हैं ......सादर

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  2. यथार्थ को बयाँ करती बेहतरीन कविता

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    1. आपको कविता पसंद आई -आपको सादर

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  3. waah jeewan gati ko darshati kavita

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    1. कविता में जीवन दृष्टि के लिए आभार -सादर

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  4. vakai manav jeevan ki sashkat mimansha..........atiuttam sir jiii ......aapki hindi dekh ke main dang rah jati hoo.

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  5. वाह ये तो ज़िन्दगी की हूबहू तस्वीर हैं ....बखूबी बयां की आपने वो बात जो हम सब महसूस करते हैं !

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  6. अतीत की यादें और भविष्‍य के लिए आकांक्षा क्‍यों रखे केवल वर्तमान में जीने की कोशिश करनी चाहिए।

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    1. अतीत की यादें नहीं है अपितु जीवन का यथार्थ है

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