सत्य
सत्य को संधान कर
बीनता सत्य जीवन का
पग -पग पर यथार्थ के सत्य से संस्पर्शर्ण
आकर्षण विकर्षण
संधान क्रिया में अंधत्व की तरफ अग्रसर हू
मै प्रकाश की तलाश में
अंधत्व से युद्ध के लिए तैयार
शंखनाद
अभी सीप से ही शंख हुआ हूँ
उसमे हवा स्वर के लिए ठडा हूँ
समुद्र के लहरों के विरुद्ध
अपने सीपे में जीवन से युद्ध
अनंत है समुद्र
उसकी गहराई भी मेरी सीपे में मापी जा सकती है
मैंने भी उसके पानी को उफान से पनाह दी है
बार-बार वह क्रुद्ध हो मेरे अन्दर आता है
अपना खारा पानी दे जाता है
और मै इस सत्य को
शंकर की तरह पी जाता हूँ
सत्य को संधान कर
बीनता सत्य जीवन का
पग -पग पर यथार्थ के सत्य से संस्पर्शर्ण
आकर्षण विकर्षण
संधान क्रिया में अंधत्व की तरफ अग्रसर हू
मै प्रकाश की तलाश में
अंधत्व से युद्ध के लिए तैयार
शंखनाद
अभी सीप से ही शंख हुआ हूँ
उसमे हवा स्वर के लिए ठडा हूँ
समुद्र के लहरों के विरुद्ध
अपने सीपे में जीवन से युद्ध
अनंत है समुद्र
उसकी गहराई भी मेरी सीपे में मापी जा सकती है
मैंने भी उसके पानी को उफान से पनाह दी है
बार-बार वह क्रुद्ध हो मेरे अन्दर आता है
अपना खारा पानी दे जाता है
और मै इस सत्य को
शंकर की तरह पी जाता हूँ
Sundar
ReplyDeleteumda
ReplyDeleteअतिशय सुन्दर भाव रवि जी
ReplyDeleteइस जीवन में खुद से शंकर बनना ही बहुत बडी बात है
ReplyDeleteअति सारगर्भित रचना।
ReplyDeleteसशक्त भाषा और भावगर्भित गहरी रचना ....बहुत सुंदर
ReplyDeleteऔर मै इस सत्य को
ReplyDeleteशंकर की तरह पी जाता हूँ..bilkul sahi bat peena hi padta hai ...
ये दुर्भाग्य है इस दौर का की सत्य को पीना पढता है विश की तरह ...
ReplyDeleteजबकि शाश्वत कवल सत्य ही है ...
प्रभावी लेखन ...
बहुत सुन्दर और गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति...
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