ठूँठ का ऊँट
बहुत कुछ आपको पढ़ना नही होता,वह तो आपके अन्तर्जगत में समाहित है,हां कभी -कभी उस पट को झांक अवश्य लिया करे ,जहां तक आपने देखा है,उसके उस पार का जगत भी ऐसा ही है,जैसा आपने देख छोड़ा है,जब आप किसी सजीव को देख रहे होते है,उसके लिए आपको कोई साहित्य या पुस्तक पढ़नी नही पड़ती,आपके अंदर का साहित्य,इतिहास,अर्थशात्र,दर्शनशात्र,भूगोल,भौतिक विज्ञान,रसायन विज्ञान,जीव विज्ञान,मानव विज्ञान, संस्कार,धृणा,प्रेम,अनुकूल - प्रतिकूल अक्षरों के रूप में वाक्य के समूहों में उद्घाटित होने लगते हैं।आपके अंदर का तमस - उमस के साथ वाहर निकलने लगता है और आप उसे व्याकरण के धागे में पिरोते हुए किसी के गर्दन में उस शब्दों की माला को डालकर प्रतीत की अनुभूति को प्राप्त होते है,हां यहां यह ध्यान रखना होगा कि प्रतीति का भी संवेदी सूचकांक होता है बस यहीं-कहीं,किसी को प्रतीति में संभावना दिखती है तो किसी में वह चक्रवात की तरह आलोड़न कर देती है या प्रतीति अपना अर्थ ही खो देती है । खैर संवेदना कोई ठोस बस्तु नही वह द्रव होता है जो स्वयम में गतिशलता लिए कभी सीधे तो कभी चौतरफा पानी के बेग को धरती में फटे दरार को तृप्त कर देती है,यह प्रक्रिया कभी मद्धिम तो कभी-कभी तीव्र होती ही रहती है । मद्धिम और तीव्र होते उसके गुण रैखिक नही होते वे छैतिज भी नही होते है।रैखिक और छैतिज के बीच मे आप कभी जीवन के चतुष्कोण बनाते व्यास को अपने प्रक्रार से मापना शुरू कर देते है क्योंकि इनकोणों में ही या तो आप व्यस्त है याआपके द्वारा खींची गई रेखा आपकी भंगिमा है तो भागिमाओं को पढ़िए जो आपके मूल उतपत्ति में है जो आपको विश्राम देती है,विश्राम से गोचर होती भंगिमाओं को आप उसके इर्द - गिर्द ही देख पाएंगे,क्योंकि जहां से आप इन चीजों को देख रहे है वह निराधार नही वह आपके अस्तित्व के आधार होते है,तो जिसका जो आधार हो उसका वह ही निष्कर्ष भी होता है तो निष्कर्णात्मकता की दृष्टि भी वायवीय ही जानिए, वायवीय होने के अपने खतरे है तो अवायवीय के भी अपने खतरे कम नही हैं अतः वायवीय होते चित्त को देखिए और यह भी देखिए कि वह ज्यामितीय कोण बना पाते है या नही ? अगर कोई आकृति नही बन पाती है तो भिन्न भिन्न कोणों के बीच स्वयम को देखें,आप यहीं कहीं किसी व्यास या कोण के आधार को लम्बवत या दंडवत करते देखे जाएंगे ।
बहुत कुछ आपको पढ़ना नही होता,वह तो आपके अन्तर्जगत में समाहित है,हां कभी -कभी उस पट को झांक अवश्य लिया करे ,जहां तक आपने देखा है,उसके उस पार का जगत भी ऐसा ही है,जैसा आपने देख छोड़ा है,जब आप किसी सजीव को देख रहे होते है,उसके लिए आपको कोई साहित्य या पुस्तक पढ़नी नही पड़ती,आपके अंदर का साहित्य,इतिहास,अर्थशात्र,दर्शनशात्र,भूगोल,भौतिक विज्ञान,रसायन विज्ञान,जीव विज्ञान,मानव विज्ञान, संस्कार,धृणा,प्रेम,अनुकूल - प्रतिकूल अक्षरों के रूप में वाक्य के समूहों में उद्घाटित होने लगते हैं।आपके अंदर का तमस - उमस के साथ वाहर निकलने लगता है और आप उसे व्याकरण के धागे में पिरोते हुए किसी के गर्दन में उस शब्दों की माला को डालकर प्रतीत की अनुभूति को प्राप्त होते है,हां यहां यह ध्यान रखना होगा कि प्रतीति का भी संवेदी सूचकांक होता है बस यहीं-कहीं,किसी को प्रतीति में संभावना दिखती है तो किसी में वह चक्रवात की तरह आलोड़न कर देती है या प्रतीति अपना अर्थ ही खो देती है । खैर संवेदना कोई ठोस बस्तु नही वह द्रव होता है जो स्वयम में गतिशलता लिए कभी सीधे तो कभी चौतरफा पानी के बेग को धरती में फटे दरार को तृप्त कर देती है,यह प्रक्रिया कभी मद्धिम तो कभी-कभी तीव्र होती ही रहती है । मद्धिम और तीव्र होते उसके गुण रैखिक नही होते वे छैतिज भी नही होते है।रैखिक और छैतिज के बीच मे आप कभी जीवन के चतुष्कोण बनाते व्यास को अपने प्रक्रार से मापना शुरू कर देते है क्योंकि इनकोणों में ही या तो आप व्यस्त है याआपके द्वारा खींची गई रेखा आपकी भंगिमा है तो भागिमाओं को पढ़िए जो आपके मूल उतपत्ति में है जो आपको विश्राम देती है,विश्राम से गोचर होती भंगिमाओं को आप उसके इर्द - गिर्द ही देख पाएंगे,क्योंकि जहां से आप इन चीजों को देख रहे है वह निराधार नही वह आपके अस्तित्व के आधार होते है,तो जिसका जो आधार हो उसका वह ही निष्कर्ष भी होता है तो निष्कर्णात्मकता की दृष्टि भी वायवीय ही जानिए, वायवीय होने के अपने खतरे है तो अवायवीय के भी अपने खतरे कम नही हैं अतः वायवीय होते चित्त को देखिए और यह भी देखिए कि वह ज्यामितीय कोण बना पाते है या नही ? अगर कोई आकृति नही बन पाती है तो भिन्न भिन्न कोणों के बीच स्वयम को देखें,आप यहीं कहीं किसी व्यास या कोण के आधार को लम्बवत या दंडवत करते देखे जाएंगे ।
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