मेरे गाँव मे एक निहायत सज्जन व्यक्ति थे वे दर्शनशात्र से एम.ए. थे ! यह घटना 1978 की होगी,आटा पिसाने के लिए पचास किलो का बोरा ले के जब चक्की पर जाते तो वह चक्की वाला भी उनका गेहूं पीसने में हिला हवाली करता ! उस चक्की पीसने वाले का बेटा भी आई. टी. आई. फिटर ट्रेड से पास करके उस समय नया -नया रेलवे में नॉकरी में लगा था,उसके पिता को यह बड़ा नागवार लगता कि उसके पड़ोसी के बड़े भाई के बेटे ने एम.ए. कैसे कर लिया ! उस जमाने मे एम.ए. कोई - कोई होता था ! वैसे उन्होंने दर्शनशात्र क्या पढ लिया विचारे पर आफत आ गयी,जहाँ भी जाते लोग बाग उनका मजाक उड़ाने से नही चूकते थे,कारण था कि बहुत उनके साथ पढ़े लोग दारोगा हो गए,बहुत लोग चपरासी भी हो गए,अन्यान्य पदों पर,पर उनकी कहीं नॉकरी नही लगी,वैसे भी उन दिनों अभिभावकों में इतना धैर्य कहां होता था, एक सीमा के बाद बच्चो को पढाये,एम.ए. थे ही,तो गांव लोग उन्हें पंडीजी कहना शुरू कर दिए, कहीं किसी के दरवाजे पर शादी विवाह में जाते तो उन्हें देखकर लोग अपने बगल वाले से धीरे से कहते,देखिए अपने बच्चे को फिलॉसफी कभी मत पढाईयेगा,मैने इनके बाप से कहा था सब पढा लीजिए पर फिलॉसफी मत पढ़ाएगा अब भोगे ससुर, यहां से पंडीजी का परिचय दे दिया जाता था ! फिर उनको यह कह कर बुलाया जाता कि ए पंडीजी जरा यहां आइए,पंडीजी किसी कहने पर चले जाते,तब उनसे मुखातिब हो पूछते क्यों मिठाई मिली ? वे संकोची स्वभाव के थे सहज ही बच्चों की तरह कह देते न अभी तो नही मिली, लेकिन आप परेशान न हो मिठाई का क्या है मिल ही जाएगी जिन्होंने उनका परिचय कराया होता था वह बड़े ही जिज्ञाषा भरी नजर से दोनों आंख को बाहर करते हुए उकड़ू हो पूछते अरे पूरा जवार मिठाई खा गया अभी ये लोग आपको मिठाई ही नही दिए ? इस प्रश्नवाचक चिन्ह में उनका हास परिहास होता था,जैसे उन्हें कोई समय पास करने के लिए कोई लड्डू मिल गया हो ! राह चलते हर चलाने वाला भी कह लेता था कि आपकी पढ़ाई दो कौड़ी की है आप हर भी नही चला सकते ! मैने आपके बाप से कहा था कि अंगूठा टेक निमन है पर फिलॉसफी पढ़ाना तो बच्चे को पागल कर देता है ! आपको नही पता होगा जब हम बच्चे थे तो हमारे जमाने मे भी एक जने एम.ए. किये थे,वो तो इतना पढ़े की पगला ही गए,तब हमने उनको बताया था कि कानू ओझा के यहां ले जाइए इसका दिमाग सनक गया है,मेरी बात मान कर वो कानू के यहां गए और उस ओझा ने ऐसी मिर्चे की धुंवे की सुघनी सुघाई की वह एकदम मुठ पकड़ कर हर जोतने लगे, आप भी एक दिन अपने पिता जी को ले के जाईये हर चलाना सिख जाएंगे,उन्होंने उनकी सलाह ली और आगे बढ़े ! संयोग से एक दिन मेरे भी सर पर बीस किलो का गेहूं का बोरा था,कपार का बोझा क्या होता है उस दिन पता चला तीनों त्रिलोक चौदह भुवन दिख रहे थे,किसी तरह गिरते पड़ते मैं भी चक्की की तरफ बढ़ा,हमसे पहले वे पहुंच चुके थे,मैं उनके ठीक पीछे था,वरसात का दिन था एक प्लास्टिक का बोरा ओढ़े वे आगे -आगे मैं पीछे -पीछे ! मेरे लिए वह बोझा पृथ्वी का बोझ था झट से उतार पैक मैने कहा पंडीजी जरा गमछा दीजिये,पंडीजी ने झट से गमछा दे कहा आप तो बहुत छोटे है फिर भी ? लाद लिया लोंगों ने ?जी मैने कहा,अरे अब जब गेहूं पिसाना हो,तो मेरे घर आ जाना,मैं तुम्हारे घर का गेहूं पिसवा दिया करूँगा,अभी वे बात ही कर रहे थे कि चक्की वाले ने कहा,हे पंडीजी,आपका गेहूं 49 किलो है, पंडीजी गमछे से मुँह पोछते हुए बोले, ना काका घर से तो जोख कर पचास किलो ही मिला है,कहीं आपके बटखरे में तो दिक्कत नही है ? तुम फिलॉसफी क्या पढ़ लिए ! हाफ माइंड हो गये हो ?मैं कक्षा आठ में नया -नया गया था,मुझे हाफमाइंड कुछ अटपटा लगा उस समय तक हाफ माइंड का मतलब समझ में आ गया था ! मैने धीरे से कहा कि एक किलो के बटखरे के साथ आपने तौल दिया है चाचा ! वे थोड़ा सकपकाए,पता नही क्या सोचकर उन्होंने ने मेरी बात मान ली ! अब उनका गेंहू पचास किलो हो गया था,मैं भी हवाई चप्पल को हाथ मे उठाये प्लास्टिक की पन्नी ओढ़ कीचड़ में आगे बढ ही रहा था पंडीजी ने आवाज लगाई रुकिए हम भी चलते है रास्ते मे पानी के बरसने से कीचड़ बहुत हो गया है कही आप गिर न जायँ ! मैं मना करता रहा लेकिन वे नही माने,मेरे पीछे - पीछे ठीक,से खांच बा, दिखाते -दिखाते मेरे घर के मोड़ पर आकर बोले, अब इधर पक्का है,आप जा सकते है ! मैने बड़े ही संकोच में उनसे कहा भाईया आप पिलासफी से एम.ए. क्यों किये ? उन्होंने मेरे मनोभाव को भाफते हुए कहा, जीवन की गुणा गणित में मैं फेल था राजनीति मुझे आती न थी जब गणित ही नही आई तो अर्थशात्र को कैसे पढ़ पाता विज्ञान को मैने भौतिकता से जोड़ कर देखा,अब क्या करता ले दे कर फिलासफी ही बची थी और मजे की बात यह थी वह विषय मुझे अच्छा भी लगता था सो पूरा बावन परसेंट नम्बर से पास हुआ था,लेकिन क्या करता ? नॉकरी नही लगी,और सच बताता हूँ मैंने भी नॉकरी को जीवन का जंजाल ही समझा ! अभी उनकी बात खत्म भी न हुई थी कि मैंने पूछा कि भाईया लोग आपका मजाक उड़ाते है,वे कुछ गम्भीर हो गए, अंधेरा होने को था पानी बरसना फिर शुरू होने ही वाला था उन्होंने कहा ''वे लोग नही जानते मैं उनको वेवकूफ समझता हूं और वे मुझे "मेरे लिए यह एक ऐसा प्रश्नचिन्ह था जिसका सटीक उत्तर आज तक नही खोज पाया और अपने घर आ गया ! अगले हफ्ते इसका अगला भाग !
Monday, July 22, 2019
फिलॉसफी
मेरे गाँव मे एक निहायत सज्जन व्यक्ति थे वे दर्शनशात्र से एम.ए. थे ! यह घटना 1978 की होगी,आटा पिसाने के लिए पचास किलो का बोरा ले के जब चक्की पर जाते तो वह चक्की वाला भी उनका गेहूं पीसने में हिला हवाली करता ! उस चक्की पीसने वाले का बेटा भी आई. टी. आई. फिटर ट्रेड से पास करके उस समय नया -नया रेलवे में नॉकरी में लगा था,उसके पिता को यह बड़ा नागवार लगता कि उसके पड़ोसी के बड़े भाई के बेटे ने एम.ए. कैसे कर लिया ! उस जमाने मे एम.ए. कोई - कोई होता था ! वैसे उन्होंने दर्शनशात्र क्या पढ लिया विचारे पर आफत आ गयी,जहाँ भी जाते लोग बाग उनका मजाक उड़ाने से नही चूकते थे,कारण था कि बहुत उनके साथ पढ़े लोग दारोगा हो गए,बहुत लोग चपरासी भी हो गए,अन्यान्य पदों पर,पर उनकी कहीं नॉकरी नही लगी,वैसे भी उन दिनों अभिभावकों में इतना धैर्य कहां होता था, एक सीमा के बाद बच्चो को पढाये,एम.ए. थे ही,तो गांव लोग उन्हें पंडीजी कहना शुरू कर दिए, कहीं किसी के दरवाजे पर शादी विवाह में जाते तो उन्हें देखकर लोग अपने बगल वाले से धीरे से कहते,देखिए अपने बच्चे को फिलॉसफी कभी मत पढाईयेगा,मैने इनके बाप से कहा था सब पढा लीजिए पर फिलॉसफी मत पढ़ाएगा अब भोगे ससुर, यहां से पंडीजी का परिचय दे दिया जाता था ! फिर उनको यह कह कर बुलाया जाता कि ए पंडीजी जरा यहां आइए,पंडीजी किसी कहने पर चले जाते,तब उनसे मुखातिब हो पूछते क्यों मिठाई मिली ? वे संकोची स्वभाव के थे सहज ही बच्चों की तरह कह देते न अभी तो नही मिली, लेकिन आप परेशान न हो मिठाई का क्या है मिल ही जाएगी जिन्होंने उनका परिचय कराया होता था वह बड़े ही जिज्ञाषा भरी नजर से दोनों आंख को बाहर करते हुए उकड़ू हो पूछते अरे पूरा जवार मिठाई खा गया अभी ये लोग आपको मिठाई ही नही दिए ? इस प्रश्नवाचक चिन्ह में उनका हास परिहास होता था,जैसे उन्हें कोई समय पास करने के लिए कोई लड्डू मिल गया हो ! राह चलते हर चलाने वाला भी कह लेता था कि आपकी पढ़ाई दो कौड़ी की है आप हर भी नही चला सकते ! मैने आपके बाप से कहा था कि अंगूठा टेक निमन है पर फिलॉसफी पढ़ाना तो बच्चे को पागल कर देता है ! आपको नही पता होगा जब हम बच्चे थे तो हमारे जमाने मे भी एक जने एम.ए. किये थे,वो तो इतना पढ़े की पगला ही गए,तब हमने उनको बताया था कि कानू ओझा के यहां ले जाइए इसका दिमाग सनक गया है,मेरी बात मान कर वो कानू के यहां गए और उस ओझा ने ऐसी मिर्चे की धुंवे की सुघनी सुघाई की वह एकदम मुठ पकड़ कर हर जोतने लगे, आप भी एक दिन अपने पिता जी को ले के जाईये हर चलाना सिख जाएंगे,उन्होंने उनकी सलाह ली और आगे बढ़े ! संयोग से एक दिन मेरे भी सर पर बीस किलो का गेहूं का बोरा था,कपार का बोझा क्या होता है उस दिन पता चला तीनों त्रिलोक चौदह भुवन दिख रहे थे,किसी तरह गिरते पड़ते मैं भी चक्की की तरफ बढ़ा,हमसे पहले वे पहुंच चुके थे,मैं उनके ठीक पीछे था,वरसात का दिन था एक प्लास्टिक का बोरा ओढ़े वे आगे -आगे मैं पीछे -पीछे ! मेरे लिए वह बोझा पृथ्वी का बोझ था झट से उतार पैक मैने कहा पंडीजी जरा गमछा दीजिये,पंडीजी ने झट से गमछा दे कहा आप तो बहुत छोटे है फिर भी ? लाद लिया लोंगों ने ?जी मैने कहा,अरे अब जब गेहूं पिसाना हो,तो मेरे घर आ जाना,मैं तुम्हारे घर का गेहूं पिसवा दिया करूँगा,अभी वे बात ही कर रहे थे कि चक्की वाले ने कहा,हे पंडीजी,आपका गेहूं 49 किलो है, पंडीजी गमछे से मुँह पोछते हुए बोले, ना काका घर से तो जोख कर पचास किलो ही मिला है,कहीं आपके बटखरे में तो दिक्कत नही है ? तुम फिलॉसफी क्या पढ़ लिए ! हाफ माइंड हो गये हो ?मैं कक्षा आठ में नया -नया गया था,मुझे हाफमाइंड कुछ अटपटा लगा उस समय तक हाफ माइंड का मतलब समझ में आ गया था ! मैने धीरे से कहा कि एक किलो के बटखरे के साथ आपने तौल दिया है चाचा ! वे थोड़ा सकपकाए,पता नही क्या सोचकर उन्होंने ने मेरी बात मान ली ! अब उनका गेंहू पचास किलो हो गया था,मैं भी हवाई चप्पल को हाथ मे उठाये प्लास्टिक की पन्नी ओढ़ कीचड़ में आगे बढ ही रहा था पंडीजी ने आवाज लगाई रुकिए हम भी चलते है रास्ते मे पानी के बरसने से कीचड़ बहुत हो गया है कही आप गिर न जायँ ! मैं मना करता रहा लेकिन वे नही माने,मेरे पीछे - पीछे ठीक,से खांच बा, दिखाते -दिखाते मेरे घर के मोड़ पर आकर बोले, अब इधर पक्का है,आप जा सकते है ! मैने बड़े ही संकोच में उनसे कहा भाईया आप पिलासफी से एम.ए. क्यों किये ? उन्होंने मेरे मनोभाव को भाफते हुए कहा, जीवन की गुणा गणित में मैं फेल था राजनीति मुझे आती न थी जब गणित ही नही आई तो अर्थशात्र को कैसे पढ़ पाता विज्ञान को मैने भौतिकता से जोड़ कर देखा,अब क्या करता ले दे कर फिलासफी ही बची थी और मजे की बात यह थी वह विषय मुझे अच्छा भी लगता था सो पूरा बावन परसेंट नम्बर से पास हुआ था,लेकिन क्या करता ? नॉकरी नही लगी,और सच बताता हूँ मैंने भी नॉकरी को जीवन का जंजाल ही समझा ! अभी उनकी बात खत्म भी न हुई थी कि मैंने पूछा कि भाईया लोग आपका मजाक उड़ाते है,वे कुछ गम्भीर हो गए, अंधेरा होने को था पानी बरसना फिर शुरू होने ही वाला था उन्होंने कहा ''वे लोग नही जानते मैं उनको वेवकूफ समझता हूं और वे मुझे "मेरे लिए यह एक ऐसा प्रश्नचिन्ह था जिसका सटीक उत्तर आज तक नही खोज पाया और अपने घर आ गया ! अगले हफ्ते इसका अगला भाग !
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बहुत सुंदर लेख। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteiwillrocknow.com