Saturday, July 20, 2019

दुआर - दलान और ड्राइंग रूम

पहले दुआर होता था, किसी खास मेहमान के आ जाने पर दलान तक ही उनका आना - जाना सीमित होता था जहां खटिया,तखत,पलंग,वसहटा बिछाया जाता था,दुआर - दलान की यह सीमा व्यक्तिगत हुआ करती थी ! दुआर वह जगह होती थी जहां एक दलान होता था, जहाँ वरसात या दोपहर में धूप से बचने के लिए लोग बनाते थे ! उस जमाने मे बड़ों के साथ बैठने का साहस कम बच्चो में होता था ! उसका कारण था कही पानी के लिए न दौड़ा दें या कोई पहाड़ा न पूछ लें या गणित का सवाल या अंग्रेजी का ट्रांसलेशन या व्याकरण न पढ़ाने लगे ? सो बच्चे दिन की दोपहरी से बचने के लिए आम के बगीचे में होते  क्या ऊंच - क्या नीच ? कुछ नही था साहब ! यह दौर वर्ष 75 - 76 इमेजेन्सी और परिवार नियोजन का था जिसका हो हल्ला था ! सभी जाति के लोग आपसी भाई चारे के साथ रहते थे,नून,नमक,तेल,लकड़ी,तक उधार दे देते थे ! बहुतायत सम्पन्न वर्ग के लोग अनाज,मुफ्त में दे देते ! किसी को यह अभिमान न होता था कि उसने कोई एहसान किया है ! लेने वाला स्वयम ही आकंठ विनम्रता की मुद्रा में इस फिराक में रहता था कि अगर इनका कोई काम पड़ता है तो मैं उनके काम आ जाऊं ! मसलन शिक्षा,विवाह,बीमारी,मृत्यु तक में सब एक दूसरे के साथ वैठे रहते थे ! जिससे जो भी सहायता बन पड़ती करते थे ! किसी का बच्चा,किसी भी जाति का हो अगर वह पान,सुर्ती, सिगरेट,पीते दिख जाए या कहीं वह निषिद्ध वस्तुओं का सेवन करता हुआ दिख जाता तो उसे तुरंत ही डांट डपट देते थे बड़े लोग ! उस समय बच्चे सामूहिक समाज की संपत्ति थे ! यह कोई आवश्यक नही था आम,महुआ,पीपल,का बगीचा,खरिहान,आप का ही हो, वह सब सकके थे, आम के दिनों आम का,जामुन,महुआ,अमरूद, का खूब स्वाद लेते थे,जिसका पेड़ होता वह बड़े प्यार से खिलाते थे ! हां उस समय पढ़े लिखे लोंगों की संख्या कम थी, पर बहुतायत लोंगों की आदत या तो कबीर की तरह होती थी,या कुछ लोग रैदास जैसे होते थे,हा कुछ निराला की तरह अक्खड़ भी थे,इस तरह अक्खड़ और फक्कड़ के बीच ही व्यक्तितत्व का निर्माण होता गया ! अभी संविधान और कानून तो बहुत लोंगों ने देखा भी न था और जो लोग कानून और संविधान को जानते थे गांव आकर सब कबीर ही हो जाते,कबीर होने का मतलब सारा रौब वे गांव के सिवान से बाहर ही छोड़ गांव की वेशभूषा में हो जाते ! मेरे गाँव मे एक बार मानवीय हिंसा हो चुकी थी,आपसी ताना बाना कुछ दरक गया था फिर भी व्यक्तिगत सम्बन्धों ने उस दरार को कम करते - करते आपसी सौहार्द से लोगों के बीच पड़ी खाई को पाट दिया था,फिर लोग उसी तरह एक दूसरे के सुख दुःख में भागीदार होना शुरू हो गए थे ! कोई भी देश या गाँव राजनीतिक प्रभावों से कहा दूर रह पाता है ? क्योंकि सामाजिक अभिव्यक्ति ही राजनीति इक्षा होती है सरकार होती है ! इंदिरा गांधी चुनाव हार चूंकि थी,जनतापार्टी का शासन था ! जनता एक बार फिर ठगी जा चुकी थी ! मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने थे,उनदिनों विदेश मंत्री का पद आज कल की तरह गृहमंत्री की तरह ही महत्वपूर्ण होता था,अटल जी देश के विदेश मंत्री बने थे वे पूर्ववर्ती सरकारों की आलोचना से बहुत दूर अपने विदेश विभाग तक ही सीमित थे,वे अनावश्यक टिप्पणी से बचते थे ! पूर्ववर्ति सरकारों को भी लोग अपनी ही सरकार की तरह मानते थे इसका एक प्रमुख कारण यह हो सकता है की अंतरार्ष्ट्रीय स्तर पर हम अपनी ही सरकार की आलोचना कर रहे है ! ऐसी प्रवृत्ति रही हो ? उस समय किसी भी केंद्रीय मंत्री से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह द्विभाषीय है या नही ? उसका कारण था, उस समय देश  के नागरिकों  को लगता था कि विदेश में उनकी पहचान उनकी ही भाषा मे दिया जा सकता है ! नागरिक यह मानते थे की हम अंतराष्ट्रीय प्रभावों से बच नही सकते,अगर देश को अपने नागरिकों को उनके अनुसार सुविधा देनी है तो हमे अंग्रेजी भी सीखना होगा ! अतः सभी पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री अपने देश के उत्तरी हिस्से में हिंदी में संबोधन करते और दक्षिण में अंग्रेजी तो पूरब में भी हिंदी - अंग्रेजी का मिश्रण चलता था । भाषण को रेडीयो पर सुनते,खासकर स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस का भाषण विशेष महत्व रखता था ! समाचार हिंदी में देवकी नन्दन पांडेय व रामानुज प्रसाद सिंह और अंग्रेजी में इंदु वाही पढ़ती थी लेकिन उस तरह का उच्चारण हिंदी और अंग्रेजी का अभी भी याद आता है तो उनकी आवाज स्पस्ट गूंजती है जिसे मैं अभिव्यक्त नही कर सकता उच्चारण की शुद्धता और प्रवाह क्या कहने ! उन दिनों अंग्रेजी योग्य लोंगों की भाषा हुआ करती थी इसका पता स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पता चला था,अपने यहां या तो बादशाह रहे या फिर राजा ? सभी राजा विक्रमादित्य ही नही रहे जयचंदों की भी कमी न थी ! भारत का पूर्वी हिस्सा बंगाल था ! वहां के लोगों ने स्वतन्त्रा आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उसका कारण था वे जानबूझकर सत्ता की भाषा को पढ़ना शुरू किया वह इसलिए की विश्व की अद्यतन राजनीतिक गतिविधियों से वे अवगत हो सके ! चूंकि यूरोपीय लोंगों की शासन व्यवस्था थी और उनकी भाषा लैटिन से निःसृत थी उनका प्रभाव पूरे विश्व पर था सो उनके प्रभाव को कम करने या समानांतर होने के  बोध ने हमने अंग्रेजी पढ़ना,पढ़ाना शुरू किया वह भी इसलिए कि 1789 में फांसीसी क्रांति हो चुकी थी ! पूरे यूरोप का पुनर्जागरण 17 वी सदी के उत्तरार्ध तक हो चुका था ! यूरोप में लोकतंत्र मजबूत हो चुका था ! उस जामने में गांधी जी व अन्य को लगा होगा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था होनी चाहिए सो लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुना गया होगा कि हम भी अपने समस्त नागरिकों को जीवन संपत्ति और सुरक्षा की गारंटी देंगे,जैसा कि यूरोपीय देशों में था ! सो नेहरू या गांधी  को यह कहना कि उन्होंने लोकतंत्र को अपनाया और यह पद्धयति गलत थी यह उन महान नेताओं के साथ अन्याय होगा ! हां  हमारे यहां स्वतंत्रता की इक्षा का 300 वर्षों के बाद आना यह भारतीय भूभाग में रहने वाले लोंगों के लिए शोध का विषय हो सकता है ! विश्व की राजनीतिक,सामाजिक चेतना के इतने दिनों बाद हम भारतीय जागे ? यह शोध का विषय हो सकता है,वह भी करीब -करीब 300 वर्षो के बाद ! विलम्बित राजनीतिक चेतना का अभ्युदय यह इंगित करता है कि हम कहीं न कहीं यथास्थितिवाद के पक्षधर तो नही ?
क्रमशः

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