Thursday, December 26, 2019

दिनमान 114


जब सरकारों के पास स्पस्ट दृष्टि,नीतियां व कार्यक्रम नही होते तो वह सरकार अनिर्णय की स्थिति में होती है।इस अनिर्णय की स्थिति से उपजे निर्णय के दंश को नागरिक समाज को ही दुष्परिणाम भुगतने होते है।यह दुष्परिणाम तत्क्षण नही दिखाई पड़ते इसका परिणाम देश व नागरिक समाज को भुगतने पड़ते है।जिस नागरिक समाज में प्रतिरोध करने की शक्ति नही होती है वह समाज लोकतांत्रिक हो ही नही सकता।कोई भी विचार जब अस्तित्व में आते है तो उसका समर्थन व विरोध भी होगा।यह समर्थन और विरोध नागरिक समाज की प्राथमिकता से संबंध रखते है।इसका कारण यह होता है कि हमारे नागरिक समाज में मुद्दे को चुनने की प्रक्रिया क्या है?हमे यह देखना होता है कि क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था संतोषजनक है?क्या हमने वाणिज्य,व्यापार,शिक्षा,चिकित्सा,अन्य नागरिक सुविधाएं प्राप्त कर ली है?क्या हमने कुशल चिकित्सक,शिक्षक, साहित्यकार,कलाकार,दार्शनिक,वैज्ञानिक,अर्थशात्री,अन्य जो मानवता के काम आ सके वह बना सके है?या बना पाए है?क्या हमारे भारतीय समाज ने कुछ आदर्श स्थिति की बात कहने व करने तक की आत्मनिर्भर आर्थिक आत्मस्थिति बना ली है?क्या हम वैश्विक दृष्टि से अग्रणी देश व वैश्विक समाज के लिए धरोहर हो चुके है?क्या हमारे सारे लक्ष्य प्राप्त हो चुके है?क्या आदर्श जैसी कोई स्थिति को प्राप्त कर ली गई है या अब इसके बाद प्रगति व आदर्श की कोई गुन्जाईस नही बन पा रही है?क्या हम प्रगति की सारी सीमाएं लांघ चुके है?क्या चिकित्सालयों,शिक्षा संस्थान अर्थ के प्रभाव से मुक्त हो चुके है?क्या भारतीय समाज अपने मानव संसाधन का उपयोग कर पा रहा है?क्या हम अपने नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा दे पा रहे है?क्या रोजगार की स्थिति अच्छी बन पा रही है?क्या संवैधानिक संस्थाएं स्वतन्त्र रूप से अपना कार्य कर रही है?रोजगार की स्थिति संतोजनक है?क्या हम अपनी सरकारों के माध्यम से नागरिक सुविधाएं दे पा रहे है?क्या देश के चिकित्सालयों की ऐसी स्थिति बन चुकी है कि वे अपने समस्त नागरिकों को चिकित्सा की समुचित व्यवस्था कर सकने में सक्षम है?क्या हमने अपने नागरिकों को आवास,सड़क,आर्थिक सुरक्षा व वैज्ञानिक सोच विकसित कर पाने की दिशा की तरफ बढ़े है या ऐसे संस्थान खोल पा रहे है जिसमे हमारे बच्चे वैज्ञानिक हो?अगर हम यह सब नही कर पा रहे है तो क्यों?क्या सरकारें हमारे द्वारा नही चुनी गई है?क्या हमने इसीलिए सरकारों व संवैधानिक व शैक्षणिक संस्थान खोल रखे है जहां स्वतन्त्र विचारों को रचनात्मक उपयोग नही किया जा सकता?क्या हमारी अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर हो चुकी है?क्या सिटीजनसीप एमेंडमेंट एक्ट 2019 से रोजगार सृजन होगा?क्या हमने इतनी समुन्नत अर्थव्यवस्था कर ली है कि हमे विश्व के अन्य देशों से कोई लेना-देना नही है?क्या हम सबके अलग-अलग ईश्वर है?अगर अलग-अलग ईश्वर है तो अलग-अलग ईश्वरों ने हमे यही सिखया है कि हम दयाहीन,हिंसक,कट्टर,समाज का निर्माण करें।भारतीयता क्या कट्टरता है?बदली हुई परिस्थिति में क्या भारतीय जनमानस को कट्टरता की आवश्यकता है?क्या अंतरराष्ट्रीय स्थितियां इस तरह की बन रही है कि कट्टर हुए बिना हमारे समाज का काम नही चल सकता?क्या रोजगार का अधिकार नही मिलना चाहिए।क्या न्यूनतम समानता नही आ जानी चाहिए?कौन धार्मिक स्थानों की स्तुति करेगा।कौन आजान की गूंजती आवाज में अपने ईश्वर के आकार ग्रहण करने से इनकार करेगा?चिकित्सा,शिक्षा,आवास,धर्म,दया,आस्था,क्या महत्वहीन हो चुके है?जीवन मे सरस्वती के संगीत की वीणा कौन-कौन बजायेगा?कौन ईश्वर के गीत गायेगा?कौन आर्तनाद करेगा?कौन किसका रक्षक होगा?स्वर के लहरों में क्या ईश्वर  की स्तुति अब नही होगी।क्या अब निराला,पंत,माहादेवी नही होगी?कौन गांधी,बुद्ध होगा?कौन राम कृष्ण की तरह से होगा?कौन लोंगों में ईश्वर के दर्शन करेगा।कौन विश्व को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ायेगा?कौन आदर्शवादी होगा जिसके उदाहरण देकर हम बच्चो को प्रोत्साहित करेंगे?कौन सबके आखों से आंशू पोछेंगा?यह सब जो उपरोक्त लिखा है क्या इस देश मे नही होता था?यह देश कब वैचारिक रूप से दरिद्र था?क्या दुर्दिनों में लोंगों ने एकदूसरे की मदद नही की है?क्रमशः हमारा भारतीय सामाज मानवतावादी विचारों को क्यों त्याग रहा है।क्या हम आने वाली सन्तातियों को एक परस्पर परिस्पर्धात्मक,पूर्वाग्रही,समाज नही सौप रहे है?क्या हमारे पिताओं व प्रपितामहों ने हमे ऐसा ही विभक्त समाज दिया था?क्या कोई समाज परस्पर पूरकता के गतिशील समाज कहलायेगा?अगर यह सब नही हो सकता तो क्या सिटीजन अमेंडमेंट एक्ट 2019 का कोई ओचित्य है?अगर इसका मतलब है तो कौन नागरिक है?कौन नागरिक नही है?नागरिक हिन्दू होता है?नागरिक मुसलमान होता है?कौन गिरती हुई अर्थव्यवस्था के लिए दोषी है?कौन बेरोजगारी बढ़ा रहा है?कौन जनसंख्या पर नियंत्रण रख पा रहा है?आज शिक्षा में फीस बढोत्तरी के लिए कौन जम्मेदार है,आम नागरिक या सरकारें या संसद?आखिर ये सवाल सरकार से न पूछा जाए?तो जबाब क्या नेहरू जी या  पटेल जी जबाब देंगे?क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था अप्रसांगिक हो गयी है?नोट बन्दी से किसको फायदा हुआ?किसको नुकसान हुआ?इन तामाम प्रश्नों के बीच क्या यह सिटीजन अमेंडमेंट बिल 2019 प्रासंगिक है?या रोजगार,शिक्षा,चिकित्सा?अगर आपको सरकार से कोई उम्मीद नही है तो मुझे कुछ नही कहना है।

आप सभी प्रबुद्ध मित्रों को अभिवादन

No comments:

Post a Comment