मेरे प्रिय मित्र आदरणीय श्री राम प्यारे राय जो मेरे लिए अनुज है ! उनके लिए मानस एक ग्रन्थ नहीं है ! मानस बांग्मय है और इस वांग्मय को लिपिबद्ध करने का उनका आग्रह है ! अत: मानस पर कुछ शब्द उकेरने में मेरे मन,हृदय,आत्मा की अनुकूलता भी है यह उनकी अगाध श्रद्धा है जो मुझे उर्जान्वित करती रहती है उनकी ऊर्जा और उनकी ही श्रद्धा की पूंजी को शब्दों में उकेरने का यह सयास प्रयास नहीं यह उनकी कृपा है की मै इस दुष्कर कार्य के लिए निमित्त मात्र हूँ इस तरह यह कार्य मेरे लिए एक कौतुहल ही है कि मेरे जैसा कम जानकार राम चरित मानस पर कुछ लिखे ! बस्तुत मानस एक ग्रन्थ नहीं यह भारतीय भूमि की परिधि है जिसका वृत्त बहुत बड़ा है जैसे ब्रह्मांड ! अत: उस वृत्त पर खड़ा होकर कुछ देख पाना अत्यंत दुष्कर है,लेकिन अनुज मित्र की इक्षा व् उनकी श्रद्धा के पीछे छिपे भाव मेरे प्रति श्रद्धा व् अनन्य का जो भाव है वह उनके आत्मतत्व से पृथक नहीं है ! अत: मै यह कह सकता हूँ की उनके आत्मतत्व और मेरे आत्मतत्व में कोई अंतर नहीं है ! हाँ शारीर से हम पृथक है पर मूल उत्स एक जैसा है !हमारे लिए राम कोई अपरिचित नहीं है मेरा ऐसा मानना है जो मेरे राम है वही मै हूँ तो यह हो सकता है की मै जो भी लिख रहा हूँ वह स्वयम के बारे में ही लिख रहा हूँ क्योंकि हमारी मान्यता है की जो पिंड में है वही ब्रह्मांड में है ! पिंड और ब्रह्मांड का अन्योनाश्रित सम्बन्ध है ! अत: जब हम पिंड के चेतन,अवचेतन,उपचेतन,अचेतन में जो कुछ भी देख रहे है वही हमारे अंदर एक पिंड के रूप में विद्यमान है ! जो विद्यमान है उसी का सातत्य है जिसका सातत्य है वही ब्रह्मांड है !जीवन एक अवधि है जो भिन्न-भिन्न कालखंडों में विभाजित है अत यह कहना की जीवन का अस्तित्व नहीं है यह गलत होगा ! जीवन व्यक्तिनिष्ठ होता है जब की राम समष्टि है अत व्यष्टि के द्वरा समष्टि की विशद विश्लेष्ण प्रस्तुत कर पाना कठिन है !अत: यह सार्भौमिक ही हो या वैसा ही हो जैसा की समष्टि का स्वभाव व् चित्त की स्थिति है इसमें लेखक का ना कोई आग्रह ही है ना ही कोई कोई पूर्वाग्रह ही है ! यह उसी प्रकार लिखा जा रहा है जैसा समष्टिगत चिन्तन है ! हां यहाँ आप यह कह सकते है की समष्टिगत चिंतन में भारतीय भाषा हो पर भाव भारतीय हो या यह किसी द्वीपीय पूर्वाग्रहों में संचरण कर रहे हो यह पूर्णतया गलत होगा !बस्तुत: पृथ्वी,आकाश,वायु,अग्नि,जल की व्याप्ति पूरी समष्टि में एक्य रखती है ! इसी तरह मानवता की एक्यता ही ब्रह्मांड की एक्यता है !अत: जहाँ जहाँ जीवन है नहीं है हर वह कण जो अणुओं का सुक्षतंम भाग ही है ! अत: जहाँ यह राम के चित्त के अनुपम सगुण रुप,चेतन,अचेतन,अवचेतन की अद्भुत कथ्य है जहां स्पृहा रहित जीवन का स्पृह जीवन का उदात्त चित्रण है जो जन-जन में व्याप्त है व्याप्त का आशय जो सर्वत्र हो,सर्वत्र से ही व्याप्ति का बोध है बोध से ही अन्तश्चेतना में व्याप्ति है अत; जो व्याप्त है वही व्याप्ति है !
Monday, January 13, 2020
लोकजीवन और मानस 01
मेरे प्रिय मित्र आदरणीय श्री राम प्यारे राय जो मेरे लिए अनुज है ! उनके लिए मानस एक ग्रन्थ नहीं है ! मानस बांग्मय है और इस वांग्मय को लिपिबद्ध करने का उनका आग्रह है ! अत: मानस पर कुछ शब्द उकेरने में मेरे मन,हृदय,आत्मा की अनुकूलता भी है यह उनकी अगाध श्रद्धा है जो मुझे उर्जान्वित करती रहती है उनकी ऊर्जा और उनकी ही श्रद्धा की पूंजी को शब्दों में उकेरने का यह सयास प्रयास नहीं यह उनकी कृपा है की मै इस दुष्कर कार्य के लिए निमित्त मात्र हूँ इस तरह यह कार्य मेरे लिए एक कौतुहल ही है कि मेरे जैसा कम जानकार राम चरित मानस पर कुछ लिखे ! बस्तुत मानस एक ग्रन्थ नहीं यह भारतीय भूमि की परिधि है जिसका वृत्त बहुत बड़ा है जैसे ब्रह्मांड ! अत: उस वृत्त पर खड़ा होकर कुछ देख पाना अत्यंत दुष्कर है,लेकिन अनुज मित्र की इक्षा व् उनकी श्रद्धा के पीछे छिपे भाव मेरे प्रति श्रद्धा व् अनन्य का जो भाव है वह उनके आत्मतत्व से पृथक नहीं है ! अत: मै यह कह सकता हूँ की उनके आत्मतत्व और मेरे आत्मतत्व में कोई अंतर नहीं है ! हाँ शारीर से हम पृथक है पर मूल उत्स एक जैसा है !हमारे लिए राम कोई अपरिचित नहीं है मेरा ऐसा मानना है जो मेरे राम है वही मै हूँ तो यह हो सकता है की मै जो भी लिख रहा हूँ वह स्वयम के बारे में ही लिख रहा हूँ क्योंकि हमारी मान्यता है की जो पिंड में है वही ब्रह्मांड में है ! पिंड और ब्रह्मांड का अन्योनाश्रित सम्बन्ध है ! अत: जब हम पिंड के चेतन,अवचेतन,उपचेतन,अचेतन में जो कुछ भी देख रहे है वही हमारे अंदर एक पिंड के रूप में विद्यमान है ! जो विद्यमान है उसी का सातत्य है जिसका सातत्य है वही ब्रह्मांड है !जीवन एक अवधि है जो भिन्न-भिन्न कालखंडों में विभाजित है अत यह कहना की जीवन का अस्तित्व नहीं है यह गलत होगा ! जीवन व्यक्तिनिष्ठ होता है जब की राम समष्टि है अत व्यष्टि के द्वरा समष्टि की विशद विश्लेष्ण प्रस्तुत कर पाना कठिन है !अत: यह सार्भौमिक ही हो या वैसा ही हो जैसा की समष्टि का स्वभाव व् चित्त की स्थिति है इसमें लेखक का ना कोई आग्रह ही है ना ही कोई कोई पूर्वाग्रह ही है ! यह उसी प्रकार लिखा जा रहा है जैसा समष्टिगत चिन्तन है ! हां यहाँ आप यह कह सकते है की समष्टिगत चिंतन में भारतीय भाषा हो पर भाव भारतीय हो या यह किसी द्वीपीय पूर्वाग्रहों में संचरण कर रहे हो यह पूर्णतया गलत होगा !बस्तुत: पृथ्वी,आकाश,वायु,अग्नि,जल की व्याप्ति पूरी समष्टि में एक्य रखती है ! इसी तरह मानवता की एक्यता ही ब्रह्मांड की एक्यता है !अत: जहाँ जहाँ जीवन है नहीं है हर वह कण जो अणुओं का सुक्षतंम भाग ही है ! अत: जहाँ यह राम के चित्त के अनुपम सगुण रुप,चेतन,अचेतन,अवचेतन की अद्भुत कथ्य है जहां स्पृहा रहित जीवन का स्पृह जीवन का उदात्त चित्रण है जो जन-जन में व्याप्त है व्याप्त का आशय जो सर्वत्र हो,सर्वत्र से ही व्याप्ति का बोध है बोध से ही अन्तश्चेतना में व्याप्ति है अत; जो व्याप्त है वही व्याप्ति है !
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Thank you for the helpful post. I found your blog with Google and I will start following. Hope to see new blogs soon.Check it out Make pan card online
ReplyDeleteबड़ी ही सुन्दर पोस्ट लिखी है आपने सच में। सूंदर पोस्ट लिखने के लिए आपका धन्यवाद और मैं इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कर रहा हु। धन्यवाद ! Read Our Blog: "What Do U Do Meaning in Hindi" "What Meaning in Hindi"
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