दिनमान 88 यह नेहरू को समर्पित है
ये भारत है !यहां हीरे,जवाहरात के तख्तताऊस पर न जाने कितने पैदा हुए और चले गए।कोहिनूर हीरा यहीं का है।हीरे में भी हीरे की खोज करने वाला भारत न सिर्फ कोहिनूर है,बल्कि वह नूर है जिसकी इबादत से पूरी कायनात जवां है।यह कोटि-कोटि ब्रह्मांडों का वह देश है जिसे किसी जामाने में आर्यवर्त कहा जाता था।तब इस भूभाग में रहने वाले सभी आर्य थे।आचार्य से आर्य समझे।यह वह भूभाग है जहां छह ऋतुओं का अनवरत कालचक्र चलता रहता है।जो विश्व के अन्य भूभागों में दुर्लभ है।भारत का वह भू भाग गांगा बेसीन का भूभाग है जिसने अपने तटीय क्षेत्रों के लिए अत्यंत उपजाऊ व समतल जमीन व अपने निवासियों की विशाल जनसंख्या दी है।जिनकी सुवह जै राम जी से शुरू होता हुआ जै सियाराम तक होती है।उत्तर की उर्वरता में न जाने कितने देवता पैदा हुए तो उत्तर से दक्षिण को विभाजित करती विंध्य पर्वतमाला की बड़ी-बड़ी चोटियां है जिसको दक्षिण भारत का इलाका कहा जाता है।यह भारत माँ का वह बक्सा है जहां धर्म है,दर्शन है,आचार्य हैं।जहां बेद हैं श्रुतियाँ है,असंख्य बन है।कावेरी बेसीन का बहुत बड़ा भाग भारत की अविरल संस्कृति की सरिता है पूरब से पश्चिम,उत्तर से दक्षिण तक विस्तार है।जहाँ वेद लिखे गए हों जिसकी ऊँचाई ज्ञान की अंतिम उचाई है,जहाँ ऋग्वेद इस देश का चिंतन है तो यजुर्वेद यहां के निवासियों के लिये बनस्पतियों में जीवन देता हो तो सामवेद ध्वनि की ध्वन्यात्मकता में प्रभाव डालता है जो जीवन की सलिल सरिता है,अथर्वेद,अर्थों के अर्थ बताता है।भारत को देवभूमि भी कहा जाता है।जानते है क्यों?यहां राम,कृष्ण,व संत ही संत हुए है।विश्व का नक्शा उठाएं टापूओं पर बसे देश मिलेंगे।वह चाहे ग्रेट ब्रिटेन हो या अमरीका हो,फांस हो,जर्मनी हो।यहाँ का सर्वश्रेष्ठ मूर्ख भी उतना ही ज्ञान रखता है जितना कि ज्ञानी जन।जानते है क्यों?यहां की संस्कृति में सहअस्तित्व नाम का जो निच्छल भाव है वह इस देश के मान को बढाता है।निच्छल शब्द से जो भाव उगता है वह उलीचने का भाव है उलीच देना का मतलब कुछ दे देना वह चाहे आशीर्वाद हो या इस देश का भूभाग हो।इसने विश्व को सिर्फ दिया ही दिया है।यह देश यहां के शासकों को सिर्फ देता ही रहता है यह लेता कुछ नही सब कुछ दे देता है।तो आप भी लीजिये दो अंजुरी गंगा जल न सही तो विलुप्त होती सरस्वती को ले सकते है।लेने के लिए झुकना पड़ता है और यहां के लोंगों ने झुक-झुक के बहुत कुछ लिया है।तभी किसी को बहुत कुछ दिया है।लेना और देना इस देश की विशेषता रही है।किसी देश का नागरिक जितना पढ़ के नही जान पायेगा।यहां का नागरिक मौखिक रूप से उतना अपनी जीवन शैली से जान जाता है।इस देश ने आक्रांताओं को भी उतना ही दिया है जितना इस देश के नागरिकों को दिया है।आक्रांताओं ने उसका सदुपयोग किया और शासन किया तो यहां के नागरिकों ने विगत चालीस वर्षों से जो उत्पात मचाया है कि यह फिर उसी ढर्रे पर निकल पड़ा है जिसे हम मध्यकाल मे छोड़ आये थे।जब कई सौ वर्षों तक लगातार पढ़ते रहेंगे और यहां के पुरातात्विक खोंजे करते रहेंगे तो सब कुछ सप्रमाण सब मिलते जायेंगे।यह विश्व की सबसे उन्नत सभ्यताओं में से एक है।इसका मतलब यह नही है कि सभ्यता के नाम पर आप हिटलर हो जाय?इसदेश के जनमानस में हिटलर कभी न पूज्य रहा है न रहेगा।इस देश ने पूरे विश्व को धर्म,जीवन दर्शन,व अविरल संस्कृति दी है।अगर हमारा इतिहास सौ पचास वर्ष का होता तो खसरा खतियान निकालता। यह कई हजार वर्षों की कहानी है तो कहाँ से खसरा व खतियान निकालूं?जिसके पास रुपया है वह सुदूर पूरब से सूदूर पश्चिम,व सूदूर उत्तर से सूदूर दक्षिण तक की यात्रा कर के देख ले।यहाँ की पुरातात्विक थातियों में वही सारे विश्व के खसरे व खतियान मिल जायेंगे।1857 से जब हम भारत के लोगों ने अपना खसरा व खतियान देखना शुरू किया तब जाकर नब्बे वरष के सतत संघर्षो,वलीदानों के बाद विश्व ने हमे 1947 में हमारा खसरा व खतियान दिया।उसमे जिन्ना की जिद ने पाकिस्तान बनवाया।वह इस देश का वह आवारा विगडैल बेटा है जो रोज-रोज अपने बाप से झगड़ा-रगड़ा करता रहता है।उसकी वेवकूफी से अफगानिस्तान और हमारे अफगानी भाई हमसे बिछड़ गए(सीमांत गांधी वही के थे)मुझे ऐसा लगता है वह फिर मिलेगा गलती सुधारेगा।सबकुछ होते हुए हम जानते है क्यों कुछ नही है?आपस की फूट यही आपसी फूट रही है जो हमें देवता से दानव बनाई है? जिसका इतिहास एक हजार ईसवी के बाद आता है।आज जब हम पुनः इक्कीसवीं सदी में है तो हमे अतीत से कुछ सबक लेना चाहिए।अनेकता में एकता जो 1947 में भगत सिंह,बोस,आजाद,गांधी नेहरू पटेल ने दिया,वह अगर विना मतभेद के रख सके तो रखे।यही से वह सब मिलेगा जो अभी तक नही प्राप्त हो सका है।अतः अपने पूर्वजों को न सिर्फ पढ़े ही उनके आचरण को अपने आचरण में ढाले यही अपने पुरखों के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।आईये हम गांधी,सुभाष,नेहरु भगत सिंह हो जाय।ज्यों ही आप एक हुए यह देश आपको इतना दे देगा कि आने वाली संतति आपको शब्दाजंलि देने से पहले शब्दकोश देखेगी की उस व्यक्तित्व के लिए कौन से शब्द पुष्प ठीक होंगे।तो निवेदन है शब्दों के ऐसे पुष्प बनाइये जिससे सबका पेट भरे,हर बेरोजगार हाथ को काम मीले,सब प्रसन्न हो सब सुखि हों।इसीलिए माहापुरुषों ने कहा है '' सर्वे भवन्ति सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,आज नेहरू जी का जन्म दिन है वे आधुनिक भारत के नीव थे।नीव दिखती नही वह पृथ्वी में दब जाती है।अतः नीव को और मजबूत करें उनकी स्मृति में पुनः हम अनेकता में एकता को बनाये रखे यही उनके जन्म दिन को मनाने की सार्थकता होगी।अन्यथा समय निकलता जाता है देश चलता जाता है।निकलते हुए समय को तो हम नही पकड़ पाएंगे पर अगर विना किसी भेदभाव के सबका सम्मान व हर हाँथ को काम देते जाएंगे तो वह दिन दूर नही जब हम पुनः मानवतावाद के अग्रदूत बन विश्व शांति का पाठ पढ़ाएंगे।
आप सभी के अंदर बैठे आदिदेव को प्रणाम।उस महान सपूत को प्रणाम जो कभी इस देश का लाल था।ऐसे लाल के जवाहर को शत-शत प्रणाम ।
ये भारत है !यहां हीरे,जवाहरात के तख्तताऊस पर न जाने कितने पैदा हुए और चले गए।कोहिनूर हीरा यहीं का है।हीरे में भी हीरे की खोज करने वाला भारत न सिर्फ कोहिनूर है,बल्कि वह नूर है जिसकी इबादत से पूरी कायनात जवां है।यह कोटि-कोटि ब्रह्मांडों का वह देश है जिसे किसी जामाने में आर्यवर्त कहा जाता था।तब इस भूभाग में रहने वाले सभी आर्य थे।आचार्य से आर्य समझे।यह वह भूभाग है जहां छह ऋतुओं का अनवरत कालचक्र चलता रहता है।जो विश्व के अन्य भूभागों में दुर्लभ है।भारत का वह भू भाग गांगा बेसीन का भूभाग है जिसने अपने तटीय क्षेत्रों के लिए अत्यंत उपजाऊ व समतल जमीन व अपने निवासियों की विशाल जनसंख्या दी है।जिनकी सुवह जै राम जी से शुरू होता हुआ जै सियाराम तक होती है।उत्तर की उर्वरता में न जाने कितने देवता पैदा हुए तो उत्तर से दक्षिण को विभाजित करती विंध्य पर्वतमाला की बड़ी-बड़ी चोटियां है जिसको दक्षिण भारत का इलाका कहा जाता है।यह भारत माँ का वह बक्सा है जहां धर्म है,दर्शन है,आचार्य हैं।जहां बेद हैं श्रुतियाँ है,असंख्य बन है।कावेरी बेसीन का बहुत बड़ा भाग भारत की अविरल संस्कृति की सरिता है पूरब से पश्चिम,उत्तर से दक्षिण तक विस्तार है।जहाँ वेद लिखे गए हों जिसकी ऊँचाई ज्ञान की अंतिम उचाई है,जहाँ ऋग्वेद इस देश का चिंतन है तो यजुर्वेद यहां के निवासियों के लिये बनस्पतियों में जीवन देता हो तो सामवेद ध्वनि की ध्वन्यात्मकता में प्रभाव डालता है जो जीवन की सलिल सरिता है,अथर्वेद,अर्थों के अर्थ बताता है।भारत को देवभूमि भी कहा जाता है।जानते है क्यों?यहां राम,कृष्ण,व संत ही संत हुए है।विश्व का नक्शा उठाएं टापूओं पर बसे देश मिलेंगे।वह चाहे ग्रेट ब्रिटेन हो या अमरीका हो,फांस हो,जर्मनी हो।यहाँ का सर्वश्रेष्ठ मूर्ख भी उतना ही ज्ञान रखता है जितना कि ज्ञानी जन।जानते है क्यों?यहां की संस्कृति में सहअस्तित्व नाम का जो निच्छल भाव है वह इस देश के मान को बढाता है।निच्छल शब्द से जो भाव उगता है वह उलीचने का भाव है उलीच देना का मतलब कुछ दे देना वह चाहे आशीर्वाद हो या इस देश का भूभाग हो।इसने विश्व को सिर्फ दिया ही दिया है।यह देश यहां के शासकों को सिर्फ देता ही रहता है यह लेता कुछ नही सब कुछ दे देता है।तो आप भी लीजिये दो अंजुरी गंगा जल न सही तो विलुप्त होती सरस्वती को ले सकते है।लेने के लिए झुकना पड़ता है और यहां के लोंगों ने झुक-झुक के बहुत कुछ लिया है।तभी किसी को बहुत कुछ दिया है।लेना और देना इस देश की विशेषता रही है।किसी देश का नागरिक जितना पढ़ के नही जान पायेगा।यहां का नागरिक मौखिक रूप से उतना अपनी जीवन शैली से जान जाता है।इस देश ने आक्रांताओं को भी उतना ही दिया है जितना इस देश के नागरिकों को दिया है।आक्रांताओं ने उसका सदुपयोग किया और शासन किया तो यहां के नागरिकों ने विगत चालीस वर्षों से जो उत्पात मचाया है कि यह फिर उसी ढर्रे पर निकल पड़ा है जिसे हम मध्यकाल मे छोड़ आये थे।जब कई सौ वर्षों तक लगातार पढ़ते रहेंगे और यहां के पुरातात्विक खोंजे करते रहेंगे तो सब कुछ सप्रमाण सब मिलते जायेंगे।यह विश्व की सबसे उन्नत सभ्यताओं में से एक है।इसका मतलब यह नही है कि सभ्यता के नाम पर आप हिटलर हो जाय?इसदेश के जनमानस में हिटलर कभी न पूज्य रहा है न रहेगा।इस देश ने पूरे विश्व को धर्म,जीवन दर्शन,व अविरल संस्कृति दी है।अगर हमारा इतिहास सौ पचास वर्ष का होता तो खसरा खतियान निकालता। यह कई हजार वर्षों की कहानी है तो कहाँ से खसरा व खतियान निकालूं?जिसके पास रुपया है वह सुदूर पूरब से सूदूर पश्चिम,व सूदूर उत्तर से सूदूर दक्षिण तक की यात्रा कर के देख ले।यहाँ की पुरातात्विक थातियों में वही सारे विश्व के खसरे व खतियान मिल जायेंगे।1857 से जब हम भारत के लोगों ने अपना खसरा व खतियान देखना शुरू किया तब जाकर नब्बे वरष के सतत संघर्षो,वलीदानों के बाद विश्व ने हमे 1947 में हमारा खसरा व खतियान दिया।उसमे जिन्ना की जिद ने पाकिस्तान बनवाया।वह इस देश का वह आवारा विगडैल बेटा है जो रोज-रोज अपने बाप से झगड़ा-रगड़ा करता रहता है।उसकी वेवकूफी से अफगानिस्तान और हमारे अफगानी भाई हमसे बिछड़ गए(सीमांत गांधी वही के थे)मुझे ऐसा लगता है वह फिर मिलेगा गलती सुधारेगा।सबकुछ होते हुए हम जानते है क्यों कुछ नही है?आपस की फूट यही आपसी फूट रही है जो हमें देवता से दानव बनाई है? जिसका इतिहास एक हजार ईसवी के बाद आता है।आज जब हम पुनः इक्कीसवीं सदी में है तो हमे अतीत से कुछ सबक लेना चाहिए।अनेकता में एकता जो 1947 में भगत सिंह,बोस,आजाद,गांधी नेहरू पटेल ने दिया,वह अगर विना मतभेद के रख सके तो रखे।यही से वह सब मिलेगा जो अभी तक नही प्राप्त हो सका है।अतः अपने पूर्वजों को न सिर्फ पढ़े ही उनके आचरण को अपने आचरण में ढाले यही अपने पुरखों के प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि होगी।आईये हम गांधी,सुभाष,नेहरु भगत सिंह हो जाय।ज्यों ही आप एक हुए यह देश आपको इतना दे देगा कि आने वाली संतति आपको शब्दाजंलि देने से पहले शब्दकोश देखेगी की उस व्यक्तित्व के लिए कौन से शब्द पुष्प ठीक होंगे।तो निवेदन है शब्दों के ऐसे पुष्प बनाइये जिससे सबका पेट भरे,हर बेरोजगार हाथ को काम मीले,सब प्रसन्न हो सब सुखि हों।इसीलिए माहापुरुषों ने कहा है '' सर्वे भवन्ति सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,आज नेहरू जी का जन्म दिन है वे आधुनिक भारत के नीव थे।नीव दिखती नही वह पृथ्वी में दब जाती है।अतः नीव को और मजबूत करें उनकी स्मृति में पुनः हम अनेकता में एकता को बनाये रखे यही उनके जन्म दिन को मनाने की सार्थकता होगी।अन्यथा समय निकलता जाता है देश चलता जाता है।निकलते हुए समय को तो हम नही पकड़ पाएंगे पर अगर विना किसी भेदभाव के सबका सम्मान व हर हाँथ को काम देते जाएंगे तो वह दिन दूर नही जब हम पुनः मानवतावाद के अग्रदूत बन विश्व शांति का पाठ पढ़ाएंगे।
आप सभी के अंदर बैठे आदिदेव को प्रणाम।उस महान सपूत को प्रणाम जो कभी इस देश का लाल था।ऐसे लाल के जवाहर को शत-शत प्रणाम ।
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