दिनमान 90
आज लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकार भाईयों का दिवस है।भारतीय गणराज्य का यह वह लोकतंत्र है जहाँ के पत्रकारों को कोई सुविधा नही है।घुट-घुट के पत्रकारिता करते यह इस गणराज्य का वह लोकतांत्रिक स्तम्भ है जहां इनकी आर्थिक सुरक्षा,बीमारी,अस्पताल,बस,रेल,हवाई जहाज,सूचना प्राप्त करने,साहब लोंगों से कुछ पूछ लेने का कोई अधिकार नही है।जिन लोंगों को यह सुविधा प्राप्त है वे दिल्ली स्टेट गेस्ट हाउस के वे पांच सितारा अब के जमाने मे दस सितारा होटल के मेहमान होते है जिनके लिए गाड़ी व ड्राइवर की गाड़ी खड़ी रहती है।अब पत्रकार कारपोरेट व सरकार के बीच सेतु का काम कर रहे है।इस समय कारपोरेट पत्रकार जहां एक तरफ मोटी तनख्वाह पा रहे है।तो नए-नए पत्रकार डंडे की मार या मुकदमे के डर से नही लिख रहे है।अब हर पत्रकार कहां से कोई मीडिया हाउस खोल सकता है?शुक्र है एक रविश कुमार जो ट्रोल हुआ है और इन्ही के पत्रकार मित्र उसको ट्रोल करते रहे हैं।जब आम जनता उसके साथ खड़ी हुई है तो हालात कुछ सामान्य हुए है।हमारे गांव के कई बच्चे पत्रकार है।मेरे गांव के एक पत्रकार भाई ने मुझे बताया था कि किसी जमाने में मजीठिया आयोग बना था।जो पत्रकारों की आर्थिक सुरक्षा और पत्रकारों को कर्मचारियों की तरह से सेवा सम्बन्धी कुछ प्रस्ताव सुझाये थे,मजीठिया आयोग की संस्तुतियों व उसके अनुपालन के लिए एक निर्णय मा0उच्चतम न्यायालय ने पत्रकारों के पक्ष में आदेश भी दिया था।लेकिन यहां के कारपोरेट को बीस प्रतिशत का लाभ नही चाहिए?यहां के कारपोरेट भी अस्सी प्रतिशत फायदे के चक्कर मे मानवता को बेंच दे रहे है।पूंजीपतियों की संख्या कम है,और श्रमिक ज्यादा हो गए है,तो मजदूरी का रेट पर अगर पेट पर काम हो जाय,तो इससे ज्यादा अच्छा क्या रहेगा?यही भारतीय पूंजीपति हैं और यही इनकी मानवता है।इन पूंजीपतियों को यह नही समझ आता है यही वो श्रम है जो पूंजी में रूपांतरित होती है जिससे उनकी पूंजी की आभा है तो लक्ष्मी की आभा को तिजोरी में रखकर चैन से सो रहे है।सुप्रीम कोर्ट और कानून इनके घर पानी भरता है।मेरे पास आंकड़ा नही है ना ही मा0 उच्चतम न्यायालय का आदेश है ना ही इन पत्रकारों में इतनी हिम्मत ही है कि वे जहां काम कर रहे है उनके खिलाफ संवैधानिक अधिकार मांग सके?पत्रकार को क्या कोर्ट भोजन कराएगा?ये लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ चुप-चाप अखबार मालिकों की जी हूजीरी कर रहे है।क्योंकि खाने पीने की व्यवस्था इन्ही अखबार मालिकों के भरोसे चल रहा है।अगर अवमानना बाद दायर कर दे तो नॉकरी चली जायेगी।ऐसे तो एक टाइम का भोजन भी सुरक्षित है न?तो मा0 पत्रकार महोदय लोंगों से निवेदन है कि अपने लिए अपने देश के लिए पीत पत्रकारिता छोड़कर अपनी आंतों में थोड़ी हवा भरे वह हवा सीने तक आ जायेगी कुछ अपने व अपने बच्चो की हक की लड़ाई लड़ ले।हमलोग तो वकील लोग है,हमको व जज साहब को तो ऋषि मुनि हो जाना चाहिए न?हमारे न घर होते है?न ही हमारी बीबी होती है न बच्चे होते है?पहले हम स्वतन्त्रता के आंदोलन के नेतृत्व करने वाले हुआ करते थे तो आजकल गुंडे हो गए है।तो आप जैसा कर रहे है वैसा ही भर भी रहे है।आप पढ़े-लिखे लोग जब वकीलों और काले कोट को गुंडे बदमाश कहेंगे तो क्या होगा?चार पायों पर खड़ा लोकतंत्र जब आपस मे ही अलोकतांत्रिक होगा तो लोकतंत्र का क्या होगा?आपलोग ज्यादा समझदार है यह हम कहां नही मानते कि आपने जो विद्वान कह-कर हमारा मजाक उड़ाया है वह आपने लोकतंत्र के लिए अच्छा किया है?हमलोगों को तो जनता की नजर में आपने धो ही दिया है।लेकिन हम वो नही जो आप सोचते है।हम तो वही सोचते है जो संविधान की प्रस्तावना सोचती है।इसीलिए हम खुद के बारे में कम हम भारत के लोंगों के बारे में ज्यादा सोचते है।यह हम वकीलों की एक ऐब है हम ऐबी जो ठहरे?हम वकीलों का क्या है?पाकिट में अठन्नी न हो पर क्लास वन आफिसर है।गाहे वेगाहे इस अकड़ से हमारे जज साहब भी परेशान रहते है।इसीलिए बहुत लोग ला करते-करते जज हो जाते है।कुछ जो इस वकालत पेशे में है वे भी जज भी बन जाते है।फिर वे ही ला ग्रेजुयट जज साहब,वकील साहब को सब्जी बेचने से लेकर जेल भेज देने की धमकी देते रहते है।इसीलिए इस स्तम्भ का भी पाया हिल ही रहा है।वो हम वकील हैं कि अपनी टांग अड़ाए है तो न्यायपालिका का विशाल न्यायतंत्र खडा है।वह चाहे नायब तहसीलदार साहब की कोर्ट हो या सुप्रीम कोर्ट हो?आपलोग ही वे सजग प्रहरी है जिनकी सूचना पर सरकारों का भविष्य तय होता है।हम कानून के जादूगर है तो आप आंकड़ों के जादूगर है।हमारी जादूगीरी संविधान सम्मत है तो आपकी जादूगीरी शब्दों की जादूगीरी है।बता दीजिए जीडीपी दस प्रतिशत है।हम कैसे नही मान लेंगे?मानना पड़ेगा ही।वैसे ही जैसे दरोगा जी की प्रथम सूचना रिपोर्ट है कि अदालत में जिरह करते रहिए एक बार दरोगा जी चाह जाय तो जेल तो पक्का है।यह इसलिए आज नहीं लिख रहा हूं यह न जाने कब का पक्का हो चला है कि नॉकरशाह पुलीस व नेता जी का गठजोड है।इस पर भी सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है।अगर वह सरकार इम्प्लीमेंट कर देगी तो लोकतंत्र नही आ जायेगा?तो हमारे आपसे सबसे बनी जो सरकार है वही दोषी है?तो उसके घर लिए चलता हूँ।आईये नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से इंडियागेट चलते है।यहां अमर जवान की जो ज्योति जल रही है इसकी अनवरत लौ में लोकतंत्र दिख जाएगा।वो देखिए अमर जवान ज्योति से विजय चौक राष्ट्रपति भवन है उसके ठीक बगल में संसद भवन है जो इस देश की सबसे बड़ी पंचायत का भवन है।जहां से 136 करोड़ लोंगों का भविष्य संवरता है।यही से भारत रत्न सहित अनेकों पुरुस्कार मिलते है।यही वह लुटियन जॉन है जहां पहुंचने के बाद सबकी लुटिया डूब जाती है।जिसकी इस लूटीयन जॉन में लुटिया डुबी तो वह लुटिया भर लेता है तो जिसने लोटा डालके निकाला तो उतना पानी निकलता है।कुछ लोग बाल्टी ब तमलेट ले के जाते है और सात पुश्तों के लिए ऐसा पानी निकालते है कि 72 साल से पानी ही निकल ही रहे है।सुना है लुटियन जॉन में पानी व हवा की दिक्कत हो गयी है?तो हम भारत के लोग एक दूसरे से मिल कर क्यों नही रह रहे है?कोई नेहरू को गाली दे रहा है कोईं किसी को गाली दे रहा है।इस जॉन में शब्दों की मर्यादा लोंगों ने खो दी है।जब सबने घर फूक तमाशा देखने की ठान ही ली है तो आइए फिर भोगते है।मीठा-मीठा गप्प-गप्प तो कड़वा-कड़वा थू-थू क्यों भाई?बदलिए।बदलने से सब बदल जाता है।जब आप और हम बदल जाएंगे तब जव मीठा खाने का मन होगा मीठा खायेंगे और जब कड़वा खाने का मन होगा मिर्च डाल के कड़वा कर लेंगे।पहले जब सुगर के रोग का जमाना नही था तो लोग खूब गुड़ खाये है।तो देखिए विचारिये पत्रा खोलकर पंडीजी विना पैसा के सब बता दे रहे है फिर यह मत कहिएगा की पंडीजी ने बताया नही था।अब हम पत्रा बन्द करते है आपलोग भी फालतू की चीजों को बंद करे।'''संघे शक्ति कलियुगे""हम भारतीय संघ को कह रहे है इससे आर एस एस का कोई लेना देना नही है।
आप सभी पत्रकार भाईयों को लोकतंत्र के पत्रकारिता दिवस की बधाई।अभी भी आपलोग बहुत अच्छा कर रहे है अच्छा करने का प्रयास करते रहिए हम सब साथ-साथ है। मित्रों को अभिवादन
आज लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकार भाईयों का दिवस है।भारतीय गणराज्य का यह वह लोकतंत्र है जहाँ के पत्रकारों को कोई सुविधा नही है।घुट-घुट के पत्रकारिता करते यह इस गणराज्य का वह लोकतांत्रिक स्तम्भ है जहां इनकी आर्थिक सुरक्षा,बीमारी,अस्पताल,बस,रेल,हवाई जहाज,सूचना प्राप्त करने,साहब लोंगों से कुछ पूछ लेने का कोई अधिकार नही है।जिन लोंगों को यह सुविधा प्राप्त है वे दिल्ली स्टेट गेस्ट हाउस के वे पांच सितारा अब के जमाने मे दस सितारा होटल के मेहमान होते है जिनके लिए गाड़ी व ड्राइवर की गाड़ी खड़ी रहती है।अब पत्रकार कारपोरेट व सरकार के बीच सेतु का काम कर रहे है।इस समय कारपोरेट पत्रकार जहां एक तरफ मोटी तनख्वाह पा रहे है।तो नए-नए पत्रकार डंडे की मार या मुकदमे के डर से नही लिख रहे है।अब हर पत्रकार कहां से कोई मीडिया हाउस खोल सकता है?शुक्र है एक रविश कुमार जो ट्रोल हुआ है और इन्ही के पत्रकार मित्र उसको ट्रोल करते रहे हैं।जब आम जनता उसके साथ खड़ी हुई है तो हालात कुछ सामान्य हुए है।हमारे गांव के कई बच्चे पत्रकार है।मेरे गांव के एक पत्रकार भाई ने मुझे बताया था कि किसी जमाने में मजीठिया आयोग बना था।जो पत्रकारों की आर्थिक सुरक्षा और पत्रकारों को कर्मचारियों की तरह से सेवा सम्बन्धी कुछ प्रस्ताव सुझाये थे,मजीठिया आयोग की संस्तुतियों व उसके अनुपालन के लिए एक निर्णय मा0उच्चतम न्यायालय ने पत्रकारों के पक्ष में आदेश भी दिया था।लेकिन यहां के कारपोरेट को बीस प्रतिशत का लाभ नही चाहिए?यहां के कारपोरेट भी अस्सी प्रतिशत फायदे के चक्कर मे मानवता को बेंच दे रहे है।पूंजीपतियों की संख्या कम है,और श्रमिक ज्यादा हो गए है,तो मजदूरी का रेट पर अगर पेट पर काम हो जाय,तो इससे ज्यादा अच्छा क्या रहेगा?यही भारतीय पूंजीपति हैं और यही इनकी मानवता है।इन पूंजीपतियों को यह नही समझ आता है यही वो श्रम है जो पूंजी में रूपांतरित होती है जिससे उनकी पूंजी की आभा है तो लक्ष्मी की आभा को तिजोरी में रखकर चैन से सो रहे है।सुप्रीम कोर्ट और कानून इनके घर पानी भरता है।मेरे पास आंकड़ा नही है ना ही मा0 उच्चतम न्यायालय का आदेश है ना ही इन पत्रकारों में इतनी हिम्मत ही है कि वे जहां काम कर रहे है उनके खिलाफ संवैधानिक अधिकार मांग सके?पत्रकार को क्या कोर्ट भोजन कराएगा?ये लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ चुप-चाप अखबार मालिकों की जी हूजीरी कर रहे है।क्योंकि खाने पीने की व्यवस्था इन्ही अखबार मालिकों के भरोसे चल रहा है।अगर अवमानना बाद दायर कर दे तो नॉकरी चली जायेगी।ऐसे तो एक टाइम का भोजन भी सुरक्षित है न?तो मा0 पत्रकार महोदय लोंगों से निवेदन है कि अपने लिए अपने देश के लिए पीत पत्रकारिता छोड़कर अपनी आंतों में थोड़ी हवा भरे वह हवा सीने तक आ जायेगी कुछ अपने व अपने बच्चो की हक की लड़ाई लड़ ले।हमलोग तो वकील लोग है,हमको व जज साहब को तो ऋषि मुनि हो जाना चाहिए न?हमारे न घर होते है?न ही हमारी बीबी होती है न बच्चे होते है?पहले हम स्वतन्त्रता के आंदोलन के नेतृत्व करने वाले हुआ करते थे तो आजकल गुंडे हो गए है।तो आप जैसा कर रहे है वैसा ही भर भी रहे है।आप पढ़े-लिखे लोग जब वकीलों और काले कोट को गुंडे बदमाश कहेंगे तो क्या होगा?चार पायों पर खड़ा लोकतंत्र जब आपस मे ही अलोकतांत्रिक होगा तो लोकतंत्र का क्या होगा?आपलोग ज्यादा समझदार है यह हम कहां नही मानते कि आपने जो विद्वान कह-कर हमारा मजाक उड़ाया है वह आपने लोकतंत्र के लिए अच्छा किया है?हमलोगों को तो जनता की नजर में आपने धो ही दिया है।लेकिन हम वो नही जो आप सोचते है।हम तो वही सोचते है जो संविधान की प्रस्तावना सोचती है।इसीलिए हम खुद के बारे में कम हम भारत के लोंगों के बारे में ज्यादा सोचते है।यह हम वकीलों की एक ऐब है हम ऐबी जो ठहरे?हम वकीलों का क्या है?पाकिट में अठन्नी न हो पर क्लास वन आफिसर है।गाहे वेगाहे इस अकड़ से हमारे जज साहब भी परेशान रहते है।इसीलिए बहुत लोग ला करते-करते जज हो जाते है।कुछ जो इस वकालत पेशे में है वे भी जज भी बन जाते है।फिर वे ही ला ग्रेजुयट जज साहब,वकील साहब को सब्जी बेचने से लेकर जेल भेज देने की धमकी देते रहते है।इसीलिए इस स्तम्भ का भी पाया हिल ही रहा है।वो हम वकील हैं कि अपनी टांग अड़ाए है तो न्यायपालिका का विशाल न्यायतंत्र खडा है।वह चाहे नायब तहसीलदार साहब की कोर्ट हो या सुप्रीम कोर्ट हो?आपलोग ही वे सजग प्रहरी है जिनकी सूचना पर सरकारों का भविष्य तय होता है।हम कानून के जादूगर है तो आप आंकड़ों के जादूगर है।हमारी जादूगीरी संविधान सम्मत है तो आपकी जादूगीरी शब्दों की जादूगीरी है।बता दीजिए जीडीपी दस प्रतिशत है।हम कैसे नही मान लेंगे?मानना पड़ेगा ही।वैसे ही जैसे दरोगा जी की प्रथम सूचना रिपोर्ट है कि अदालत में जिरह करते रहिए एक बार दरोगा जी चाह जाय तो जेल तो पक्का है।यह इसलिए आज नहीं लिख रहा हूं यह न जाने कब का पक्का हो चला है कि नॉकरशाह पुलीस व नेता जी का गठजोड है।इस पर भी सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट है।अगर वह सरकार इम्प्लीमेंट कर देगी तो लोकतंत्र नही आ जायेगा?तो हमारे आपसे सबसे बनी जो सरकार है वही दोषी है?तो उसके घर लिए चलता हूँ।आईये नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से इंडियागेट चलते है।यहां अमर जवान की जो ज्योति जल रही है इसकी अनवरत लौ में लोकतंत्र दिख जाएगा।वो देखिए अमर जवान ज्योति से विजय चौक राष्ट्रपति भवन है उसके ठीक बगल में संसद भवन है जो इस देश की सबसे बड़ी पंचायत का भवन है।जहां से 136 करोड़ लोंगों का भविष्य संवरता है।यही से भारत रत्न सहित अनेकों पुरुस्कार मिलते है।यही वह लुटियन जॉन है जहां पहुंचने के बाद सबकी लुटिया डूब जाती है।जिसकी इस लूटीयन जॉन में लुटिया डुबी तो वह लुटिया भर लेता है तो जिसने लोटा डालके निकाला तो उतना पानी निकलता है।कुछ लोग बाल्टी ब तमलेट ले के जाते है और सात पुश्तों के लिए ऐसा पानी निकालते है कि 72 साल से पानी ही निकल ही रहे है।सुना है लुटियन जॉन में पानी व हवा की दिक्कत हो गयी है?तो हम भारत के लोग एक दूसरे से मिल कर क्यों नही रह रहे है?कोई नेहरू को गाली दे रहा है कोईं किसी को गाली दे रहा है।इस जॉन में शब्दों की मर्यादा लोंगों ने खो दी है।जब सबने घर फूक तमाशा देखने की ठान ही ली है तो आइए फिर भोगते है।मीठा-मीठा गप्प-गप्प तो कड़वा-कड़वा थू-थू क्यों भाई?बदलिए।बदलने से सब बदल जाता है।जब आप और हम बदल जाएंगे तब जव मीठा खाने का मन होगा मीठा खायेंगे और जब कड़वा खाने का मन होगा मिर्च डाल के कड़वा कर लेंगे।पहले जब सुगर के रोग का जमाना नही था तो लोग खूब गुड़ खाये है।तो देखिए विचारिये पत्रा खोलकर पंडीजी विना पैसा के सब बता दे रहे है फिर यह मत कहिएगा की पंडीजी ने बताया नही था।अब हम पत्रा बन्द करते है आपलोग भी फालतू की चीजों को बंद करे।'''संघे शक्ति कलियुगे""हम भारतीय संघ को कह रहे है इससे आर एस एस का कोई लेना देना नही है।
आप सभी पत्रकार भाईयों को लोकतंत्र के पत्रकारिता दिवस की बधाई।अभी भी आपलोग बहुत अच्छा कर रहे है अच्छा करने का प्रयास करते रहिए हम सब साथ-साथ है। मित्रों को अभिवादन
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