Sunday, September 9, 2012

आपको वैचारिकी के लिए आमन्त्रण








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मित्रों -मेरी व्यक्तिगत राय में ''राजनीति औए राजनीतज्ञों की गिरती साख लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए खतरा है. अत: सभी लोगों को लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बरकरार रखनें के लिए आगे आना होगा
मा.मित्रो आपको वैचारिकी के लिए आमन्त्रण।


  • Chandresh Dixit Saadar pranam dada..aaj kal to log rajneeti ko sirf gali hi dete hain...
    August 6 at 11:17pm via mobile · · 2

  • Govind Gopal Vaishnava आदरणीय सर ..
    लोकतान्त्रिक व्यवस्था जब ही बरक़रार रहेगी तब तक सत्ता में जाने वाले देश हित की सोचेगे ..बिना देश हित यह मुश्किल है ..आज सिर्फ अपने स्वार्थ को पूरा कर सत्ता लोभी सिर्फ और सिर्फ लोकतान्त्रिक व्यवस्था को धूमिल कर रहे है ..
    August 6 at 11:41pm · · 2

  • Nityanand Gayen १.'राजनीति औए राजनीतज्ञों की गिरती साख ,२.लोकतान्त्रिक व्यवस्था ,३. खतरा. इन तीनों बातों पर फिर से ध्यान दीजिए . लोकतंत्र लोक से है यानि जनता . और लोकतंत्र में राजनेता या राजनीतज्ञ जनता के समर्थन के बिना बने रहना संभव नही . फिर किसे आगे आने के लिए कह रहे हैं ? हमने ही तो इन राजनेताओं को आज इस मुकाम पर पहुंचाया है ..
    August 6 at 11:54pm · · 1

  • Ravi Shankar Pandey नित्यानंद जी -राजनीति राज्य के अस्तित्व के सिद्धांत पर आधारित है।अत:समाज या समुदाय से हम सब राजनीति को पृथक नहीं कर सकते अलबत्ते आप लोगो में सहभागिता की वकालत कर सकतें है, क्योकि राज्य के अस्तित्व में होने कि अनिवार्यता है की उसके लिए आवश्यक अवययों में जनसंख्या,भूभाग,एक निश्चित क्षेत्रफल एवं प्रभुसत्ताधारी का अस्तित्व में होना ही यह सुनिश्चित करता है कि राज्य का अस्तित्व है.२ लोकतंत्र -लोकतंत्र एक व्यवस्था है जिसने नागरिक अधिकारों की वकालत की जा सकती है अन्य व्यवस्था में राज्य सर्वोपरी होता है जबकि लोकतंत्र में राज्य और व्यक्ति दोनों एक सिक्के की तरह है ...................सादर

  • Nityanand Gayen जैसी प्रजा ,वैसा राजा .......
    August 7 at 12:19am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey राजा और प्रजा राजतंत्रात्मक प्रणाली के प्रतिनिधि है ......सादर

  • Nityanand Gayen आप सोचिये कि इस देश में कोई जेल से भी चुनाव लड़कर जीत जाता है जिस पर कोई संगीन आरोप हैं , ये सिर्फ लोकतंत्र में ही संभव है .
    August 7 at 12:21am · · 1

  • Nityanand Gayen लोग अबु सलीम को भी चुनाव में खड़ा करना चाहते थे ऐसा सुनने में आया था , अब कहिये क्या उम्मीद करते हैं आप ? क्या यही कि लोकतंत्र में ये उसका संवेधानिक अधिकार है ?
    August 7 at 12:24am · · 1

  • भूपट शूट कोई भी व्यवस्था व्यक्ति से ही शुरू होती हैं. व्यक्ति का स्वरूप मूल रूप से शक्ति की रचना पर अर्धनारीश्वर का हैं. दोनों मिलके परिवार बनाते हैं. फिर कुटुंब व समन्धि व रिश्तेदारों का समुदाय बनता हैं . (लगातार)..
    August 7 at 12:25am · · 1

  • Nityanand Gayen किसी को भी उठाकर रातों रात मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बना दिया जाता है इस देश में .
    August 7 at 12:26am · · 2

  • Ravi Shankar Pandey आप राज्य के विरुद्ध कारित अपराधों का अध्यन करेंगें तो पायेंगे कि कारित अपराध के लिए भी श्रेणी बद्ध दंड है, अधिनायकबाद में तो प्र्भुसत्ताधारी का आदेश ही कानून होता है ............सादर

  • Nityanand Gayen जी , कानून तो हर चीज़ का है , उस पर सही अमल कहाँ हुआ आज तक ? जब चाहा आपातकाल घोषित कर दिया
    August 7 at 12:27am · · 2

  • Nityanand Gayen अपने ही देश में नागरिकता सावित करते -करते कई बार दम तोड़ देता है इंसान थाने में , गरीब को अपनी गरीबी प्रमाणित करनी पड़ती है इसी देश में. सरकारी कागज के बिना मृत , मृत नही होता ......
    August 7 at 12:30am · Edited · · 2

  • Ravi Shankar Pandey स्व.प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को उच्च न्याय्यालय में हाजिर होना पड़ा था ..

  • Nityanand Gayen सिर्फ कुछ वर्षों तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध पर्याप्त था लाखों सिखों की मृत्यु के बदले ?
    August 7 at 12:33am · · 1

  • Nityanand Gayen उनका कत्ल हुआ था सोची समझी साजिस के तहत , कोई तो अब भी मजे से घूम रहे हैं
    August 7 at 12:34am · · 1

  • Nityanand Gayen सच तो यह है पाण्डेय जी कि हमारी गुलामी और चापलूसी की आदत गई नही है , आखिर दो सौ वर्षों से अधिक का अनुभव है हमें
    August 7 at 12:36am · Edited · · 1

  • भूपट शूट हम इसी सोच व चिंतन को आधार मानकर परिवार, परिवेशिकी, जन्मभूमि तथा कर्मभूमि पर पहले चर्चा करना कुच्छ जरुरी लगता (लगातार).... वंहा कबीला, जाती, जनजाति आदि के साथ स्थानीय समाज की सामूदायिकता, वातावरण व प्रक्रति का प्रभाव प्रमुख कारक मिलकर परिवेशिकी का स्वरूप बनता हैं. परिवार के बाद हम इस परिवेशिकी को लौकिक व सही अर्थो मे जन्मभूमि कहते हैं.
    August 7 at 12:37am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey आप पूरा एक आलेख प्रस्तुत करें ताकि उसका विश्लेष्ण किया जा सके और अपनी राय रखी जा सके ..............सादर

  • Nityanand Gayen मुझे कह रहे हैं क्या ?
    August 7 at 12:38am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey नित्यानंद जी -आज के विषय पर एक लेख प्रस्तुत करें ....जिससे सुसुप्त नागरिक बोध जागे ...............सादर

  • Nityanand Gayen मैं आपको आज की घटनाक्रम का एक उदाहरण देता हूँ , आज सीमा आज़ाद और विश्व विजय को हाई कोर्ट से जमानत मिल गई . ये तो पक्का हाई कि इन दोनों ने वही बात , वही तथ्य निचली अदालत के समक्ष भी रखी होगी अपने बचाव में . फिर किस आधार पर निचली अदालत ने इन दोनों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई ? अब जब उन्हें जमानत मिल गई हाई तो निचली अदालत के उस न्यायाधीश के विवेक और योग्यता पर प्रश्न चिह्न लगता है .
    August 7 at 12:45am · · 1

  • भूपट शूट जन्मभूमि के बाद कर्मभूमि करका होती हैं. कर्मभूमि अपने आप मे जन्मभूमि भी हो सकती व तथा दूर भी हो सकती हैं, परन्तु कर्मभूमि को जन्मभूमि से कटना नहीं चाहिए व उसे सींचने से ही स्रजन की सतत प्रक्रिया मे बाधा व टकराव कम होता हैं. जन्मभूमि अपने परिवेशिकी के कारकों कों समाहित रखते हुवे स्रजन का आधार होने के कारण सभ्यता की जड़ कही जा सकती हैं. अतः हम कहते भी हैं की जो जन्मभूमि से कट जाता हैं वह अपनी जड़ों से भी कट जाता हैं. जन्मभूमि संस्क्रति की जननी होकर उसमे गतिशीलता बनाये रखती हैं व इससे ही स्रजन को बल मिलता हैं. जन्मभूमि ही संस्क्रति की पालनहार, रक्षक व सरंक्षक भी होती हैं.
    August 7 at 12:47am · · 1

  • भूपट शूट अब बताइए रविजी की क्या लोकतंत्र इन मानको का पालन करता हैं जिनका मैने ऊपर के तीन कमेन्ट में उल्लेख किया हैं.
    August 7 at 12:49am · · 1

  • Nityanand Gayen भाई जो किताबें दिल्ली पुस्तक मेले में बिक रही हो उन्हें खरीदने वाला नक्सली कैसे हो जाता है , क्या निचली अदालत ने विनायक सेन मामले में सर्वोच्च न्यायलय द्वारा कही गई बातों पर ध्यान नही दिया . कि जिस तरह गाँधी को पढ़ने वाला हर व्यक्ति गाँधी वादी नही हो जाता उसी तरह किसी के पास से नक्सल सम्बंधित सामग्री मिलने भर से वो नक्सली नही हो जाता
    August 7 at 12:49am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey भूपट शूट जी -आपके इस कथन से अक्षरश: सहमत हूँ ...आपने अच्छी व्यख्या कि जो तर्क संगत है

  • भूपट शूट अगर नहीं मिलता हैं तो हम और आप इसको केसे पतन से रोक सकते हैं?पतनशील काल के लोकतन्त्र ने समाज को कत्लखाना बना दिया हैं वाह हम स्वयं पतंगे की भांति उस और बढ़ रहें हैं. सोसियल मिडिया ने हमारे अंदर सब तरह की घ्रणा अधिक फेलाई हैं. हम एक अलग ही तरह की मनोवैज्ञानिक गुलामी के बस में बेबस व लाचार नजर आते हैं !
    August 7 at 12:58am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey भूपट शूट जी -मै आपकी जिज्ञाषा कल शांत करने का प्रयाश करुगा .....

  • Ravi Shankar Pandey नित्यानद जी -भारतीय दंड संघिता का अध्यन करें

  • भूपट शूट अवश्य जी.
    August 7 at 11:36am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey अनल कान्त झा जी -आप विस्तार से अपने विचार रक्खे ....स्वागत है .............सादर

  • Praveen Kumar Gaur sir mai kahunga thoda yeh bhi dhayan de ki jo log chun kar sansad me jante hai unka vote % kitana hota hai. jise aap loktantra ki duhai ya kami kah rahe hai. Mere samajh se rajneeti ki girti sakh ya apradhi ka chuna jana hum budhjeeviyao ki udasinata hai. Garib, anpar ya u kahen gawn me rhane wale jaati w dharm w parti ke naam pe line laga kar vate dete hai aur apne ko budhajeen\vi samjhne wale log nhi kisi ko prereet karte hai na khud hi vote dene ke liya prerit hote hai. Aise me rajneet ki sakh ya loktantrik vayvstha ko gali dena & bura kahana kaha tak sahi sahi hai?
    August 8 at 2:24am · · 1

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