Tuesday, June 7, 2016

पितृपक्ष




ये मेरे पिता जी ! 
कभी मार्गदर्शक के रूप में, 
कभी वर्जनाओं में 
कभी नियमों में आबद्ध 
कभी दिखे प्रतिबद्ध
मेरी हितबद्धता से आबद्ध 
एक साँचें में ढालते हुए 
अपने को खोते हुए 
मुझमे स्वयं को खोजते हुए 
कभी नियमों को तोड़ा 
कभी सिद्धांतों को छोडा
खुद के कसम कश करते हुए 
जीवन के भ्रम को जानते हुए भी 
जीवन भ्रमण करते रहे 
मुझमें स्वयं को देखते रहे 
आशा की कल्पना की उड़ान भरते हुए 
आज ग्रहों नक्षत्रों की कक्षा से मुझे 
आदेश देतें है 
और मै अनुशासित भाव से 
अपने संतति को वह भाव सम्प्रेषित कर 
उनका वैचारिक विसर्जन करता हूँ! 


                       

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