Thursday, August 9, 2012

आन्दोलन नैतिकता के लिए








 विभक्त समाज उपेक्षित महसूस कर रहा है ! वौद्धिकता स्वयम के साथ न्याय नहीं कर रही जातियों और नस्लों तक सिमट गयी है ! नव वौधिक बर्ग शब्दों को बेच कर जीवन यापन के लिए मजबूर है ? सनातन शब्द अपना अर्थ खो रहा ,सह -अस्तिव की भावना क्रमश:अस्त हो रही ! मानवतावादी शक्तियाँ चुप है , संवेदनशीलता समग्रता के साथ न होकर खेमे में बटी है ! उत्तरदायित्व बोध का आभाव सा है ? पूजीवाद का स्वरूप जब तक मानवतावादी नहीं होगा, वैश्विक स्तर पर उसके परिणाम नकारात्मक होंगें ! उसी का प्रतिफल वैचारिक विद्रपता है।हम सभी को आत्मावलोकन करना पड़ेगा की मूल समस्या की जड़ में वह कौन सा तत्व है!जिससे विषमताए आयीं है!मेरे मत में मूल समस्या के जड़ में हमारी प्रवृतियाँ है हम मानवीय न होकर आत्म केन्द्रित हो गए है,यह वैयक्तिक विचलन ही सभी के समस्याओं जड़ है,हम सब मानव जैसे दीखते अवश्य है,किन्तु अन्दर की संवेदना मृत प्राय:हो चुकी है मानवता,जिससे नैतिक मूल्यों में ह्रास आ रहा है और हम निजी स्वार्थ में दृष्टिहीन होते जा रहे है!मेरी अपनी व्यक्तिगत राय में केवल नैतिक मूल्यों से ही पाशविक प्रब्रितियो पर नियंत्रण पाया जा सकता है ,आंतरिक अनुशासन से ही हम समाज में अपना अस्तिव अक्षुण रख पा रहे है, अगर ऐसा न होता तो पाषाण युग से आज तक की यात्रा,या यूँ कहे की होमोसेम्पियेस से चेतना स्तर को हमने विकसित किया या प्रकृति के द्वारा हो गया कह नहीं सकता ! सब कुछ मानवीय अनुशासन से और मानवीयता से निसृत है और यह सब हमारे अंदर संवेदनशीलता से आती है, और संवेदना का विकास हमरे प्रबत्तियों से, और प्रबत्तियां हमारे सांस्कृतिक मूल्यों से, और सांस्क्रतिक मूल्य धर्म से ,और धर्म हमरी पद्यतियों से जीवन शौली से! रही कानून व्यवस्था की बात, तो वो इसी अन्तर्द्वन्द की उपज है।व्यक्ति की पशुता को कानून से नही दूर किया जा सकता ! एतिहासिक सांसकृतिक पृष्ठिभूमि का बिहंगम अवलोकन आवश्यक है !कानून व्यक्ति के लिए होता है पशु के लिए नहीं, अगर व्यक्ति में पशुता है तो देवत्व भी है! अभी कितने साल हुए गाँधी जी को हमसे अलग हुए जितने भी महापुरुष हुए है, वे ऐसा सिर्फ अपनी प्रबल घनीभूत संवेदनशीलता एवं द्रष्टिकोण व्यापकता की वजह से ही है। अत: खेमों में न बटते हुए घनीभूत मानवीयता का विकाश करें।





3 comments:

  1. बहुत सार्थक प्रयास

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  2. व्यक्ति की पशुता को कानून से नही दूर किया जा सकता !
    bahut sarthak lekh ..!!
    natikata evam jeevan mulyon ke abhav me manav pashuvat hota ja raha ha..!manav ko punah manushya banane ke liye kanun ka sahara liya ja raha hai..,aaj manushya disha heen ho chuka ha ..,andhkar me praksh ki ek ksheen rekha bhi kahi vilupt hoti ja rahi ha..,kya ham use khoj payenge..........??????

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  3. मानव के विकास-क्रम के सोपानो को तय करने वाली व्यक्ति की परिभाषा ही सामाजिकता का मुख्य मनोविज्ञान भाव पैदा करने वाली कारक व प्रेरक शक्ति हैं जिससे मानव के विकसित मस्तिष्क ने समाज में सकारात्मक परिवर्तन किया हैं.

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