अब मेरे पेन की स्याही खत्म हो रही है
क्रमवार ढंग से छोड़ते हुए सभी
अभी ही मिले थे एक लम्बे अरसे के बाद
अभी ही छुटे हैं
छूट गया सत्य का पिटारा
जिसके सहारे आत्मविश्वाश का मशाल लिए
चलता था इस किनारे से उस किनारे तक
बोझिल होती बदहवास सी हवाएं रोकतीं हैं
रुकता हूँ पुन: चलता हूँ
अब मै चाल दिया गया हूँ
सिर्फ नर कंकाल अस्थि पंजर के साथ
अपने अस्तित्व को ढ़ोने में
अथक
सीमाएं और उनका बोध
स्वर नहीं मिलता अवरोध
अपने स्वर की धार को खोजता वह अब नहीं
शायद आयेगा भी नहीं
क्रमिक है विकाश
निराश -हताश
आस -पास
सत्य नहीं दिखता
सूर्य नहीं उगता
यह मेरा दुस्साहस
या कहूँ साहस ?
कशमकश
मोहरा हो गया हूँ
कभी कहीं चल लिया जाता हूँ
कहीं भी छल लिया जाता हूँ
अब छलनिं होता जा रहा हूँ
स्याही जब तक खत्म नहीं होती
विश्वास कम नहीं होता
स्वासों के झरने और उसका प्रपात
आशा की किरण स्याही की तरह
आकार ले ही लेती है
सकरात्मक से नकारात्मक के बीच
जीवन को ढूढता हूँ
कुछ नहीं हाँथ लगता ?
तलाशता कुछ नहीं मिलता
खोता जाता जीवन अनुभूतियाँ
सकारात्मकता से नकरात्मक ध्रुवों के बीच की यात्रा
यात्रा खत्म नहीं होती
न खत्म होता जीवन
प्रवाह से कौन बच पाया
वह गया यह आया
ठहराव नहीं गति है
गति सत्य है
वहाव और ठहराव यह भावभिव्यक्ति है
आत्म अभिव्यक्तियों से दूर जब
तटस्थ हो देखते
एक सा दिखयी पड़ने वाला पूरी समग्रता के साथ
भाँती - भाँती रंगों को स्थापनाओं का
सामंजस्य
उससे उपजता
निष्कर्ष
मै निष्कर्ष नहीं एक आयाम हूँ
वह मेरा भोगा गया है
मै उसकी जननी एवं उसका स्रष्टा हूँ
मेरी सर्जना का एक विन्दु
वह मेरा प्रस्थान विन्दु की तरह है
अब मै केवल प्रस्थान विन्दु पर ही देखा जा सकता हूँ
यात्रा का दम्भ भर लिया है
लेकिन यात्रा और उसकी अनुभूति
सकरात्मक से नकारात्मक ध्रुवों के बीच की
यात्रा से यात्रा तक की है
Good poem
ReplyDeleteअनंत की यात्रा और आपकी सोच कभी ना थमे....पर मन की घुटन को विश्राम जरुर मिले ...ये ही दुआ है
ReplyDeleteमन की पीडा ,,, का सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteअति भाव पूर्ण कविता !! मेरी कामना है ये आशादीप न बुझने पाये !!!
ReplyDeleteआज की सामाजिक दशा एवं यथार्थ का बोध कराती हुई , जहाँ सत्य पर असत्य की विजय हो रही है !!अज्ञान रूपी अंधकार का बोध कराती हुई ,जहाँ सूर्य का प्रकाश भी अंधकार दूर करने में असमर्थ है !!
ReplyDeleteकवि जो स्वयं सूर्य का प्रतीक है ,'रवि '.......".सूर्य नहीं उगता ' ...शायद वह आज की परिस्थितियों से निराश है !..मेरा विचार है कि कवि की रचनाधर्मिता कभी चुकती नहीं उसकी कलम की स्याही कभी ख़त्म नहीं होती !!!!
मन के अंतर्द्वंद का सजीव चित्रण करती आपकी इस रचना में इस जीवन-यात्रा के प्रति सकारात्मकता के पुनर्सृजन का सन्देश निहित है .. अभिनन्दन रवि भाई !
ReplyDeleteजीवन यात्रा एक निरंतर प्रवाह है ....जो आशा और उम्मीद के सहारे ही गतिमान रहती है ...जिस दिन इसका दामन छूटा ,समझो जीवन छूटा ...!!
ReplyDeleteनिरंतर प्रवाह मय जीवन में हर तरह के पल आते हैं ...
ReplyDeleteउनका बाखूबी चित्रण किया है .. आशा के संबल भी बरकरार है रचना में ..
Bahut achhi rachna.
ReplyDeleteBahut achhi rachna.
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