Tuesday, September 18, 2012

धर्म के आयाम


मेरे निजी राय में धर्म के मुख्यतः दो आयाम हैं । एक संस्कृति ,जिसका सम्बन्ध वाहर से है , और दूसरा है ,आध्यात्म ,जिसका हमारे अंतस से है , मत बाह्य आरोपित है ,तत्व और मत , दोनों का जोड़ ही धर्म है जहाँ तक मैंने समझा है,जब हम माँ के गर्भ में होते है , हमारे विकाश के साथ ही संकृति तत्व हमारे अंदर समाहित हो जाता है , और उसी का प्रतिरूप धर्म तत्व है।प्रसव बेदना को जानने के बाद भी वह हमें जीवन देती है,यह सहज नहीं है,बहुत ही दुष्कर कार्य है, हमारा जों ही पृथ्वी से संस्पर्शन होता है ,वह अपने स्तन से संस्कार चुसाती है ,उसकी निजता से हम मुक्त नहीं हो पते इसीलिए उसी खास कुनबे तक अपने आपको समर्पित कर देते है,धर्म को चित्रों के रूप में नहीं देखा जा सकता , धर्म अद्रश्य सत्ता है।मै कहता हूँ की शारीर की दो अवस्थायें,एक सूक्ष्म,और दूसरा स्थूल,''स्थूल को भोजन, व्यंजन, विलास, की आवश्यकता है वह शारीर है,लेकिन जो हमारा सूक्ष्म है उसे ही ज्ञान ,विज्ञानं ,धर्म ,आधात्म , अब तय यह करना है ,कि कौन किस स्तर पर जीता है ,अगर आप शारीर के स्तर पर है , तो आवश्यकताओं का अम्बार लगा है ,अगर चेतन के स्तर पर मन से जीते है ,तो वहाँ आपकी मानसिक खुराक की आवश्यकता होगी,और मानसिक खुराग स्वस्थ परिचर्चा से स्वाध्याय से संभव हैं।मानव को उश्रृंखलता से बचाने का साधन है धर्म!
जो स्थानिक स्तर पर दैहिक मानसिक आत्मिक रुप से सुख की अनुभूति के उद्देश्य से स्वाभाविक प्रक्रियाके अन्तर्गत विकसित होता है जो कालान्तर मे मानव स्वार्थ से प्रभावित होकर सहज स्वाभाविक सुन्दर स्वरुप को खो देता है या मनुष्य अपनी सुविधानुसार धर्म की अवधारणा धारण करता रहता है! ---मित्रों आप ब्लॉग में अपने विचार दे सकते है ......

Sunday, September 9, 2012

आप सभी माननीय प्रबुद्ध मित्रों को आमन्त्रण

लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाने वाली पत्रकारिता क्या है।पत्रकारिता जनहित में कार्य करती हुयी दिखती है या नियोजित व्यापार ?
आजकी परिचर्चा में आप सभी माननीय प्रबुद्ध मित्रों को आमन्त्रण



  • Govind Gopal Vaishnava सर.. पूर्ण व्यापारी हो गए है ..पैसा दो तमाशा देखो ...बस इनके तमासे में रोज वो ही दीखते है ...जो पैसा देते है ...समाज..देश का असली परिवेश कैसा हो रहा ..जनता की क्या हालत हो रहा ..यह नहीं दिखा सकते ..क्यों की इनसे कोई पैसा नहीं मिलता ...आज के दौर में इस देश की माली हालत में इनका भी बहुत बड़ा योगदान चल रहा है ...
    May 31 at 8:55pm · · 6

  • Ram Pratap Singh gopal ji, to shayad anna andolan k liye kis ne paisa diya tha, aap ko jaankari hogi, kripya kr batane ka kast kare...
    May 31 at 9:06pm via mobile · · 1

  • Govind Gopal Vaishnava Ram pratap singh JI... milte hai chote se break ke baad... ad ke roop me crore Rs.... kya yeh nahi milta.. aur hamare kahna ka matlab yhi ki jab bajar me jo bikta hai use hi dikhaya jata hai.. Manu Singhvi ki itna bewal macha..media ke pass sab kuch proof tha... use kyo daba diya gaya...??????
    May 31 at 9:15pm · · 3

  • Govind Gopal Vaishnava Ram pratap singh ji.. pure media ki yeh halat nahi hai lekin 60% ki yhi halat hai ..40% aise hai ..jo achha kar rahe hai ...lekin kharab hone walo ka bahumat jyada ho gaya hai abhi..
    May 31 at 9:22pm · · 2

  • Ram Pratap Singh Gopal ji, har cheez ko dekhne k do nazariye hote h, afsos ki aapka nazariya galat h, desh ko to deemak ki tarah neta kha rhe h, media to jaagruk karti h lakin fir bhi asamajik log chun kar aa jate h, bik to janta bhi rahi h.... Hm aur aap b usme saamil h...
    May 31 at 9:32pm · · 1

  • Ram Pratap Singh Main apne vichaar hatasha me deta hu, kisi ko tesh ho to chhmaa kare...
    May 31 at 9:34pm · · 3

  • Ram Pratap Singh sahi aap ne 60% batlaayen h, maan bhi liya jaye to aap ko positive thinking rakhni thi...
    May 31 at 9:39pm via mobile · · 1

  • अनल कान्त झा सभी प्रबुद्ध मित्रों को सादर नमन ! भाई रविशंकर जी बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है आपने , बधाई !! आज की पत्रकारिता उपभोक्तावाद का एक अहम् हिस्सा है जिसे जनता के मुद्दों से कम सत्ता और मनोरंजन की duniya से ज्यादा लेना देना है. लोगों के साथ क्या हो रहा है वो मुद्दे गौण हैं शाहरुख़ या सलमान कितनी बार छींक रहे है वो ज्यादा महत्वपूर्ण हैं. लोकतंत्र के प्रति अपनी जिम्मेवारी से क्या लेना देना है बस सत्ता के गलियारों में बने रहना है.. सत्ता पारितोषिक देती है जनता दुआएं मगर दुवाओं से पेट नहीं भरता ..ये पत्रकार भाई लोग ज्यादा प्रक्टिकल हो गए हैं....
    May 31 at 9:40pm · · 5

  • Govind Gopal Vaishnava Ram pratap singh mujhe to tesh nahi puchi..yaha hum vichar batne ke liye jude aur vichar kabhi meete hote hai kabhi khate hote ... isme kisi ko bura nahi manna chaiye.. in vicharo se hi hume sikhne ko milta hai... ek dusre se... Sadar..
    May 31 at 9:45pm · · 3

  • Manish Sinha humare liye sabse dukhad baat ye hai ki print media jo ki kafi had tak vikrati se door hai ab samanya samaj me apni paith khota ja raha hai ....
    May 31 at 9:55pm via mobile · · 2

  • Manish Sinha news ka vastvik swaroop tabhi safal kahlata hai jab ki use uski sahi jagah par paish kiya jata hai ... Jaise page 3 ki news page 3 par hi sobha deti hai na ki front page par ..... Aur news channel ki baat to karna hi kya jinhe saniya mirza ki saadi ka coverage 56 crpf jawano ki naksaliya dwara hyatya se adhik lubhata hai.
    May 31 at 10:02pm via mobile · · 3

  • Govind Gopal Vaishnava Aur Aishwarya ke beeche ke janm ke liye 8-9 din tak maidan me dete rahe the ..jaise desh ki neev isi par tiki ho..
    May 31 at 10:04pm · · 3

  • Manish Sinha media ka mukhya kaam samaj ko aaj ki buriyo aur ghatnav se parichit karana hai , na ki logo ka manoranjan karna ... Manranjan ke liye filme hai daily soap hai .... Aur ab agar news channel bhi manoranjan ka sadhan hai to phir ab kya kahu ....
    May 31 at 10:11pm via mobile · · 3

  • Ravi Shankar Pandey Manish Sinhaji.Govind Gopal Vaishnavaji..Ram Pratap Singhji .माननीय प्रबुद्ध मित्रों - साहित्य समाज का दर्पण होता है यह उक्ति कक्षा १० में पढ़ा था,अगर मै गलत नहीं हूँ तो शायद सरदार पूर्ण सिंह ने लिखा था।वर्तमान को हम क्या कहें?जब हम अपने साहित्य को देखते है, लेखन की शैली को देखते है, तो पाते है जिसका जिक्र उपर माननीय मित्रों ने किया है,और यह सच भी है।आज प्रश्न उठाने का कारण कारण यह है की मिडिया ने कारपोरेट का स्थान लिया है क्या यह उचित है?या मिडिया कार्पोरेट की तरह है जो नियोजित व्यापार करती है?मेरे मत में मिडिया को कार्पोरेट नहीं होना चाहिए, कारण है उत्पादन और उत्पाद यही कारपोरेट है।कारपोरेट का कार्य है उत्पादन करना उपभोक्ता तक भौतिक बतुओं को तैयार कर सुरुचिपूर्ण ढंग से पहुचना और उससे मुद्रा का विपणन करना,जबकि मिडिया यह भौतिक उत्पाद न होकर मानसिक उत्पाद है।यहाँ यह उल्लेखनीय है की जहाँ पुरे समाज के मानसिक उत्पाद और खुराक की बात आती है निसंदेह वह मानसिक उत्पाद भौतिक उत्पाद से भिन्न होगा ,होना चाहिए,क्योक अन्य उत्पाद हमारे शारीरिक सैष्ठ्व के लिए आवश्यक है ठीक उसी प्रकार मानसिक सैष्ठाव के लिए हमें विपणन की वर्तमान प्रणाली में सजगता बरतते हुए एक ऐसे मानसिक उत्पाद के वातावरण को तैयार करना होगा जो स्वस्थ मनोरंजन,ज्ञानवर्धक तथ्यों,एवं सामाजिक संसिकृतिक सरोकारों से जुडी हुयी हो ,जो जनमानस के चरित्र का निर्माण कर सके साथ ही अधिकाधिक जनहित में समाज का प्रवक्ता ...सरपंच की तरह न्याय कर सकने वाला हो .............सादर
    May 31 at 10:47pm · · 4

  • Brijesh Baweja पत्रकारिता ताकत पैसे ग्लेमर के लिए ही है.चौथा खम्बा तो नहीं चौथा कैंसर जरूर कह सकते हैं.
    May 31 at 10:49pm · · 2

  • Ravi Shankar Pandey Brijesh Bawejaji..ब्रिजेश जी - साहित्य समाज का दर्पण होता है यह उक्ति कक्षा १० में पढ़ा था,अगर मै गलत नहीं हूँ तो शायद सरदार पूर्ण सिंह ने लिखा था।वर्तमान को हम क्या कहें?जब हम अपने साहित्य को देखते है, लेखन की शैली को देखते है, तो पाते है जिसका जिक्र उपर माननीय मित्रों ने किया है,और यह सच भी है।आज प्रश्न उठाने का कारण कारण यह है की मिडिया ने कारपोरेट का स्थान लिया है क्या यह उचित है?या मिडिया कार्पोरेट की तरह है जो नियोजित व्यापार करती है?मेरे मत में मिडिया को कार्पोरेट नहीं होना चाहिए, कारण है उत्पादन और उत्पाद यही कारपोरेट है।कारपोरेट का कार्य है उत्पादन करना उपभोक्ता तक भौतिक बतुओं को तैयार कर सुरुचिपूर्ण ढंग से पहुचना और उससे मुद्रा का विपणन करना,जबकि मिडिया यह भौतिक उत्पाद न होकर मानसिक उत्पाद है।यहाँ यह उल्लेखनीय है की जहाँ पुरे समाज के मानसिक उत्पाद और खुराक की बात आती है निसंदेह वह मानसिक उत्पाद भौतिक उत्पाद से भिन्न होगा ,होना चाहिए,क्योक अन्य उत्पाद हमारे शारीरिक सैष्ठ्व के लिए आवश्यक है ठीक उसी प्रकार मानसिक सैष्ठाव के लिए हमें विपणन की वर्तमान प्रणाली में सजगता बरतते हुए एक ऐसे मानसिक उत्पाद के वातावरण को तैयार करना होगा जो स्वस्थ मनोरंजन,ज्ञानवर्धक तथ्यों,एवं सामाजिक संसिकृतिक सरोकारों से जुडी हुयी हो ,जो जनमानस के चरित्र का निर्माण कर सके साथ ही अधिकाधिक जनहित में समाज का प्रवक्ता ...सरपंच की तरह न्याय कर सकने वाला हो .............सादर
    May 31 at 10:51pm · · 2

  • Ravi Shankar Pandey अनल कान्त झा जी - साहित्य समाज का दर्पण होता है यह उक्ति कक्षा १० में पढ़ा था,अगर मै गलत नहीं हूँ तो शायद सरदार पूर्ण सिंह ने लिखा था।वर्तमान को हम क्या कहें?जब हम अपने साहित्य को देखते है, लेखन की शैली को देखते है, तो पाते है जिसका जिक्र उपर माननीय मित्रों ने किया है,और यह सच भी है।आज प्रश्न उठाने का कारण कारण यह है की मिडिया ने कारपोरेट का स्थान लिया है क्या यह उचित है?या मिडिया कार्पोरेट की तरह है जो नियोजित व्यापार करती है?मेरे मत में मिडिया को कार्पोरेट नहीं होना चाहिए, कारण है उत्पादन और उत्पाद यही कारपोरेट है।कारपोरेट का कार्य है उत्पादन करना उपभोक्ता तक भौतिक बतुओं को तैयार कर सुरुचिपूर्ण ढंग से पहुचना और उससे मुद्रा का विपणन करना,जबकि मिडिया यह भौतिक उत्पाद न होकर मानसिक उत्पाद है।यहाँ यह उल्लेखनीय है की जहाँ पुरे समाज के मानसिक उत्पाद और खुराक की बात आती है निसंदेह वह मानसिक उत्पाद भौतिक उत्पाद से भिन्न होगा ,होना चाहिए,क्योक अन्य उत्पाद हमारे शारीरिक सैष्ठ्व के लिए आवश्यक है ठीक उसी प्रकार मानसिक सैष्ठाव के लिए हमें विपणन की वर्तमान प्रणाली में सजगता बरतते हुए एक ऐसे मानसिक उत्पाद के वातावरण को तैयार करना होगा जो स्वस्थ मनोरंजन,ज्ञानवर्धक तथ्यों,एवं सामाजिक संसिकृतिक सरोकारों से जुडी हुयी हो ,जो जनमानस के चरित्र का निर्माण कर सके साथ ही अधिकाधिक जनहित में समाज का प्रवक्ता ...सरपंच की तरह न्याय कर सकने वाला हो .............सादर
    May 31 at 10:52pm · · 2

  • Brijesh Baweja मैं विशेष रूप से इलेक्ट्रोनिक मीडिया की बात कर रहा हूँ.निष्पक्षता से तो कोई नाता ही नहीं है जिसका राज उसी के पूत है
    May 31 at 10:55pm · · 2

  • Ravi Shankar Pandey ब्रिजेश जी -आपसे सहमत हूँ ........................सादर
    May 31 at 10:56pm · · 2

  • Ravi Shankar Pandey Faujdaar Fouzdar Ram Rajji&Suveer Guptaji परिचर्चा में स्वागत है

  • Suveer Gupta आज कल की पत्रकारिता को मैं कोई स्तम्भ नहीं मान सकता... पैसा कमाना ही एक मात्र उद्देश्य है. जनता को भ्रमित करती है आजकल की पत्रकारिता.
    May 31 at 11:02pm · · 3

  • Alka Bhartiya yeh to ek udyog hai jsike samrthan me paroksh roop se sarkaar bhi hai ek channel ke license ke liye karodo rupye ki sarkari fees hai upar se jo chay pani hota hai uska to koi hisab nahi yeh bharat ka chautha satambh hai jo karodo invest karta hai to phir us investment se kuch laabh hi to stambh bana payega
    May 31 at 11:15pm · · 3

  • Drr Achal आज अखबार वही लिकते है जो कारपोरेट चाहते है, जनता की बात करने वाले पत्रकारो अखबार से निकाल दिया जाता है......
    May 31 at 11:28pm · · 3

  • Govind Gopal Vaishnava सत्य कहा ..सर...में पूर्ण सहमत हूँ... सादर आभार...
    May 31 at 11:48pm · · 1

  • Ravi Shankar Pandey Drr Achalji..Alka Bhartiyaji ...अनल कान्त झा जी.....Suveer Guptaji Aagrj पद्मसंभव श्रीवास्तव जी ह्र्द्धेय अग्रज पद्मसंभव जी,अचला जी ,सुवीर जी ..डॉ० अचल जी ..एक विकल्प एवं समीक्षात्मक टिप्पणी की अपेक्षा है ..........................सादर
    May 31 at 11:57pm · · 2

  • Alka Bhartiya vyvstha badel bina koi badlav sambhav nahi
    June 1 at 12:02am · · 2

  • Ram Pratap Singh Drr achal ji, main aap se poori tarah sehmat hu, ye hi hota h...
    June 1 at 12:23am · · 1

  • Ram Pratap Singh Har koi swarg jana chahta h, lakin marna koi nahi chahta... Bhagat singh jaise log paida hone chahiye, apne ghar me nhi, padosi k yahaan, kisi ko dosh kyun dete ho, Sabhi ki ye hi 'kahani' h... Subh raatree...
    June 1 at 12:39am · · 1

  • Rakesh Mishra Achcha prasang h yakinan media apne asal mudde se hatkar vyaparik ho chuki h use kaha se jada akarshak, teekha masala milega wahi dera jamaye rahti h. aapasi cmptisn me jada dhyan h.

  • Rakesh Mishra Kabhi kisi gaon ya gareeb ki samasyao k liye samay nahi h media k paas Magar Aishwarya k bache k intjar maheno kar sakti h. Sachin kaun se sabun se nahata h. Katrina aaj khwaja k darbar me gayi. Soniya apne ilaj k liye Amerika me h es par najar h. magar gareeb kishan jo ameero ka aandata h ek- ek boond pani k liye mar raha h yaha najar nahi h media ki.

  • Suveer Gupta विकल्प कोई नहीं है, हमें आज के वातावरण में रहना स्वीकारना ही होगा. थोडा बहुत कुछ कर सकते है तो हम ही कर सकते है... वो भी अपने विचार व्यक्त करके. बस.

  • Chandrasekhar Manmoji आज की दुनिया मेँ सब बिकता है
    अखबार से ज्यादा खबर लिखने वाले बिक रहे है
    मौजुदा दौर मेँ जो देश के हालात है
    उसके कुछ जिम्मेदार ये लोग ही है
    सच को झुठ और झुठ को सच बताकर आम जनता को सच से कोसो दुर रखा जा रहाँ हैँ
    आजकल ज्यादातर अखबारो से किसी न किसी नेता या राजनीतिक प्रभाव वाले व्यक्तियो से सम्बंध है।

आपको वैचारिकी के लिए आमन्त्रण








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मित्रों -मेरी व्यक्तिगत राय में ''राजनीति औए राजनीतज्ञों की गिरती साख लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए खतरा है. अत: सभी लोगों को लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बरकरार रखनें के लिए आगे आना होगा
मा.मित्रो आपको वैचारिकी के लिए आमन्त्रण।


  • Chandresh Dixit Saadar pranam dada..aaj kal to log rajneeti ko sirf gali hi dete hain...
    August 6 at 11:17pm via mobile · · 2

  • Govind Gopal Vaishnava आदरणीय सर ..
    लोकतान्त्रिक व्यवस्था जब ही बरक़रार रहेगी तब तक सत्ता में जाने वाले देश हित की सोचेगे ..बिना देश हित यह मुश्किल है ..आज सिर्फ अपने स्वार्थ को पूरा कर सत्ता लोभी सिर्फ और सिर्फ लोकतान्त्रिक व्यवस्था को धूमिल कर रहे है ..
    August 6 at 11:41pm · · 2

  • Nityanand Gayen १.'राजनीति औए राजनीतज्ञों की गिरती साख ,२.लोकतान्त्रिक व्यवस्था ,३. खतरा. इन तीनों बातों पर फिर से ध्यान दीजिए . लोकतंत्र लोक से है यानि जनता . और लोकतंत्र में राजनेता या राजनीतज्ञ जनता के समर्थन के बिना बने रहना संभव नही . फिर किसे आगे आने के लिए कह रहे हैं ? हमने ही तो इन राजनेताओं को आज इस मुकाम पर पहुंचाया है ..
    August 6 at 11:54pm · · 1

  • Ravi Shankar Pandey नित्यानंद जी -राजनीति राज्य के अस्तित्व के सिद्धांत पर आधारित है।अत:समाज या समुदाय से हम सब राजनीति को पृथक नहीं कर सकते अलबत्ते आप लोगो में सहभागिता की वकालत कर सकतें है, क्योकि राज्य के अस्तित्व में होने कि अनिवार्यता है की उसके लिए आवश्यक अवययों में जनसंख्या,भूभाग,एक निश्चित क्षेत्रफल एवं प्रभुसत्ताधारी का अस्तित्व में होना ही यह सुनिश्चित करता है कि राज्य का अस्तित्व है.२ लोकतंत्र -लोकतंत्र एक व्यवस्था है जिसने नागरिक अधिकारों की वकालत की जा सकती है अन्य व्यवस्था में राज्य सर्वोपरी होता है जबकि लोकतंत्र में राज्य और व्यक्ति दोनों एक सिक्के की तरह है ...................सादर

  • Nityanand Gayen जैसी प्रजा ,वैसा राजा .......
    August 7 at 12:19am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey राजा और प्रजा राजतंत्रात्मक प्रणाली के प्रतिनिधि है ......सादर

  • Nityanand Gayen आप सोचिये कि इस देश में कोई जेल से भी चुनाव लड़कर जीत जाता है जिस पर कोई संगीन आरोप हैं , ये सिर्फ लोकतंत्र में ही संभव है .
    August 7 at 12:21am · · 1

  • Nityanand Gayen लोग अबु सलीम को भी चुनाव में खड़ा करना चाहते थे ऐसा सुनने में आया था , अब कहिये क्या उम्मीद करते हैं आप ? क्या यही कि लोकतंत्र में ये उसका संवेधानिक अधिकार है ?
    August 7 at 12:24am · · 1

  • भूपट शूट कोई भी व्यवस्था व्यक्ति से ही शुरू होती हैं. व्यक्ति का स्वरूप मूल रूप से शक्ति की रचना पर अर्धनारीश्वर का हैं. दोनों मिलके परिवार बनाते हैं. फिर कुटुंब व समन्धि व रिश्तेदारों का समुदाय बनता हैं . (लगातार)..
    August 7 at 12:25am · · 1

  • Nityanand Gayen किसी को भी उठाकर रातों रात मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बना दिया जाता है इस देश में .
    August 7 at 12:26am · · 2

  • Ravi Shankar Pandey आप राज्य के विरुद्ध कारित अपराधों का अध्यन करेंगें तो पायेंगे कि कारित अपराध के लिए भी श्रेणी बद्ध दंड है, अधिनायकबाद में तो प्र्भुसत्ताधारी का आदेश ही कानून होता है ............सादर

  • Nityanand Gayen जी , कानून तो हर चीज़ का है , उस पर सही अमल कहाँ हुआ आज तक ? जब चाहा आपातकाल घोषित कर दिया
    August 7 at 12:27am · · 2

  • Nityanand Gayen अपने ही देश में नागरिकता सावित करते -करते कई बार दम तोड़ देता है इंसान थाने में , गरीब को अपनी गरीबी प्रमाणित करनी पड़ती है इसी देश में. सरकारी कागज के बिना मृत , मृत नही होता ......
    August 7 at 12:30am · Edited · · 2

  • Ravi Shankar Pandey स्व.प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को उच्च न्याय्यालय में हाजिर होना पड़ा था ..

  • Nityanand Gayen सिर्फ कुछ वर्षों तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध पर्याप्त था लाखों सिखों की मृत्यु के बदले ?
    August 7 at 12:33am · · 1

  • Nityanand Gayen उनका कत्ल हुआ था सोची समझी साजिस के तहत , कोई तो अब भी मजे से घूम रहे हैं
    August 7 at 12:34am · · 1

  • Nityanand Gayen सच तो यह है पाण्डेय जी कि हमारी गुलामी और चापलूसी की आदत गई नही है , आखिर दो सौ वर्षों से अधिक का अनुभव है हमें
    August 7 at 12:36am · Edited · · 1

  • भूपट शूट हम इसी सोच व चिंतन को आधार मानकर परिवार, परिवेशिकी, जन्मभूमि तथा कर्मभूमि पर पहले चर्चा करना कुच्छ जरुरी लगता (लगातार).... वंहा कबीला, जाती, जनजाति आदि के साथ स्थानीय समाज की सामूदायिकता, वातावरण व प्रक्रति का प्रभाव प्रमुख कारक मिलकर परिवेशिकी का स्वरूप बनता हैं. परिवार के बाद हम इस परिवेशिकी को लौकिक व सही अर्थो मे जन्मभूमि कहते हैं.
    August 7 at 12:37am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey आप पूरा एक आलेख प्रस्तुत करें ताकि उसका विश्लेष्ण किया जा सके और अपनी राय रखी जा सके ..............सादर

  • Nityanand Gayen मुझे कह रहे हैं क्या ?
    August 7 at 12:38am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey नित्यानंद जी -आज के विषय पर एक लेख प्रस्तुत करें ....जिससे सुसुप्त नागरिक बोध जागे ...............सादर

  • Nityanand Gayen मैं आपको आज की घटनाक्रम का एक उदाहरण देता हूँ , आज सीमा आज़ाद और विश्व विजय को हाई कोर्ट से जमानत मिल गई . ये तो पक्का हाई कि इन दोनों ने वही बात , वही तथ्य निचली अदालत के समक्ष भी रखी होगी अपने बचाव में . फिर किस आधार पर निचली अदालत ने इन दोनों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई ? अब जब उन्हें जमानत मिल गई हाई तो निचली अदालत के उस न्यायाधीश के विवेक और योग्यता पर प्रश्न चिह्न लगता है .
    August 7 at 12:45am · · 1

  • भूपट शूट जन्मभूमि के बाद कर्मभूमि करका होती हैं. कर्मभूमि अपने आप मे जन्मभूमि भी हो सकती व तथा दूर भी हो सकती हैं, परन्तु कर्मभूमि को जन्मभूमि से कटना नहीं चाहिए व उसे सींचने से ही स्रजन की सतत प्रक्रिया मे बाधा व टकराव कम होता हैं. जन्मभूमि अपने परिवेशिकी के कारकों कों समाहित रखते हुवे स्रजन का आधार होने के कारण सभ्यता की जड़ कही जा सकती हैं. अतः हम कहते भी हैं की जो जन्मभूमि से कट जाता हैं वह अपनी जड़ों से भी कट जाता हैं. जन्मभूमि संस्क्रति की जननी होकर उसमे गतिशीलता बनाये रखती हैं व इससे ही स्रजन को बल मिलता हैं. जन्मभूमि ही संस्क्रति की पालनहार, रक्षक व सरंक्षक भी होती हैं.
    August 7 at 12:47am · · 1

  • भूपट शूट अब बताइए रविजी की क्या लोकतंत्र इन मानको का पालन करता हैं जिनका मैने ऊपर के तीन कमेन्ट में उल्लेख किया हैं.
    August 7 at 12:49am · · 1

  • Nityanand Gayen भाई जो किताबें दिल्ली पुस्तक मेले में बिक रही हो उन्हें खरीदने वाला नक्सली कैसे हो जाता है , क्या निचली अदालत ने विनायक सेन मामले में सर्वोच्च न्यायलय द्वारा कही गई बातों पर ध्यान नही दिया . कि जिस तरह गाँधी को पढ़ने वाला हर व्यक्ति गाँधी वादी नही हो जाता उसी तरह किसी के पास से नक्सल सम्बंधित सामग्री मिलने भर से वो नक्सली नही हो जाता
    August 7 at 12:49am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey भूपट शूट जी -आपके इस कथन से अक्षरश: सहमत हूँ ...आपने अच्छी व्यख्या कि जो तर्क संगत है

  • भूपट शूट अगर नहीं मिलता हैं तो हम और आप इसको केसे पतन से रोक सकते हैं?पतनशील काल के लोकतन्त्र ने समाज को कत्लखाना बना दिया हैं वाह हम स्वयं पतंगे की भांति उस और बढ़ रहें हैं. सोसियल मिडिया ने हमारे अंदर सब तरह की घ्रणा अधिक फेलाई हैं. हम एक अलग ही तरह की मनोवैज्ञानिक गुलामी के बस में बेबस व लाचार नजर आते हैं !
    August 7 at 12:58am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey भूपट शूट जी -मै आपकी जिज्ञाषा कल शांत करने का प्रयाश करुगा .....

  • Ravi Shankar Pandey नित्यानद जी -भारतीय दंड संघिता का अध्यन करें

  • भूपट शूट अवश्य जी.
    August 7 at 11:36am · · 1

  • Ravi Shankar Pandey अनल कान्त झा जी -आप विस्तार से अपने विचार रक्खे ....स्वागत है .............सादर

  • Praveen Kumar Gaur sir mai kahunga thoda yeh bhi dhayan de ki jo log chun kar sansad me jante hai unka vote % kitana hota hai. jise aap loktantra ki duhai ya kami kah rahe hai. Mere samajh se rajneeti ki girti sakh ya apradhi ka chuna jana hum budhjeeviyao ki udasinata hai. Garib, anpar ya u kahen gawn me rhane wale jaati w dharm w parti ke naam pe line laga kar vate dete hai aur apne ko budhajeen\vi samjhne wale log nhi kisi ko prereet karte hai na khud hi vote dene ke liya prerit hote hai. Aise me rajneet ki sakh ya loktantrik vayvstha ko gali dena & bura kahana kaha tak sahi sahi hai?
    August 8 at 2:24am · · 1