Thursday, July 4, 2013

सोवियत संघ का पतन




                सोवियत संघ का पतन

जहां तक सोवियत संघ के पतन के कारणों में आर्थिक बदहाली , अपराध . माफिया,तस्करी,महगाई आदि न होकर सुनियोजित षणयंत्र था। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था जिसके पोषक पश्चिम यूरोप के देश और उनकी मानसिकता के लोग, उन्होंने सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था का निर्वचन अपने तथाकथित लोकतांत्रिक व्यवस्था जिसमे उदारवाद,व्यक्तिवाद,सन्निहित था, सोवियत संघ के विखराव का एक प्रमुख कारण माना।वात्विकता यह थी की समाजवादी अर्थव्यवस्था को पूंजीवादी अर्थव्यवस्था नकार रही थी,पूरा विश्व दो धुर्वों में बंटा था,एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाने वाले देश और दूसरी समाजवादी अर्थव्यवस्था को अपनाने वाले देश।सन 1982-से 1992 तक के जितने भी राजनितिक विश्लेषक,समाजशात्री ,अर्थशास्त्री थे सबने सोवियत संघ को एक शक्तिशाली देश माना,जिसके पीछे उन्होंने वहां की समुन्नत अर्थव्यवस्था और वहां की साक्षरता का प्रतिशत और महिलाओं और पुरुषों की कार्यक्षमता एवं प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता और उसका दोहन का जो आकलन किया है उससे यह लगता है अतीत का सोवियत संघ एक समाजवादी अर्थव्यवस्था का रोल माडल था।विज्ञान और तकनिकी,शिक्षा व्यवस्था,चिकित्सा व्यवस्था जो भी राज्य के आधारभूत उन्नत परिमाण हो सकतें है वह सब कुछ था,अन्तराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भी उसकी पूंजी कम न थी मेरी खुद की राय में अगर सोवियत संघ मात खाया तो उसके प्रमुख कारणों में उसका वाणिज्य और व्यापार का माडल अमरीका जैसा न था,वह साम्राज्यवादीवादी न होकर एक मानवतावादी अर्थव्यवस्था का पोषक था।जितने भी उसके मित्र देश थे वे सभी अर्थव्यवस्था के आंकड़ें के  हिसाब से विकसित देशों के श्रेणी में नहीं आते थे वाणिज्य और व्यापार विदेशी मुद्रा के साथ प्रतिस्पर्धा न कर सकने का हश्र एक समुन्नत राष्ट्र के विघटन के रूप में देखने को मिला,एक विचारिकी का पटाक्षेप,जैसा आप आज भी देख सकतें है एक औसत किसान का बेटा अंतत: मजदूर होता है|